सरकारी योजनाओं की अधूरी कहानी! नंगे पैर,नंगे बदन,ना सर पर छत ना योजना का पूरा लाभ… क्या यही गणतंत्र है!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ, पत्रकार को समाज का दर्पण ऐसे ही नहीं कहा जाता, बल्कि पत्रकार ही समाज की समस्या को शासन प्रशासन के सामने लाता है। हमारा समाज तीन अलग अलग वर्गों में विभाजित है उच्च वर्ग,मध्यम वर्ग और एक है निम्न वर्ग, समाज में निम्न वर्ग के पास ना रोजी पक्की होती है ना रोटी मकान के नाम पर कच्चे मकान दूसरी तरफ बहुत से लोग शासन की योजनाओं पर आश्रित होते हैं। ऐसे में उन्हें हर मौसम में गुजारा करना बहुत कठिन होता है खास कर बारिश और कड़कड़ाती ठंड के दिनों में भगवान भरोसे दिन महीने और साल कटते हैं।
बरसों से विकास के सुनहरे वादों के बीच गुजरते चुनावी पंचवर्षीय साल दर साल और सरकारी भवन और मंत्रियों के आलीशान बंगले और उसमें उपलब्ध सुविधाओं को देख निम्न वर्ग के लोगों के जेहन में एक सवाल बार बार उठता है कि उनका विकास कब होगा?उन्हें मिलने वाली शासन की योजना का पूरा लाभ क्यों नही मिलता,आधा अधूरा लाभ कई गंभीर सवाल खड़े करता है। कम से कम इन तस्वीरों से तो शासन की योजनाओं का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने का कागजी दावा प्रस्तुत करने वाले प्रशासनिक व्यवस्था और उदासीन अधिकारियों की पोल खोलती नजर आती है।
ये तस्वीर है कोटा विधानसभा क्षेत्र की है जहाँ विधायक डॉ श्रीमती रेणु जोगी हैं और सांसद अरुण साव हैं। ये तसवीर सौंरा जाति के लोगों की है जो कोटा जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत कुँवारी मुड़ा के आश्रित ग्राम लालपुर के निवासी हैं। ये यहाँ सालों से निवासरत हैं और कई विधानसभा और सांसद चुनाव में जनप्रतिनिधियों को चुनकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कुँवारी मुड़ा ग्राम पंचायत का आश्रित ग्राम लालपुर एसडीएम और जनपद कार्यालय कोटा से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर है और रेल लाईन के किनारे इन लोगों का बसेरा है।
इनके पूर्वज साँप पकड़ने और खेल दिखा कर अपने और परिवार का जैसे तैसे भरण पोषण किया करते थे। घुमंतू जाति होने की वजह से इनके ठिकाने बदलते रहते। किंतु पिछले तीन दशक से ये यहीं निवास करते हैं। हालाकि वन विभाग नें साँप पकड़ने पर रोक लगा दी है इसलिए ये लोग ग्राम पंचायत में मनरेगा के तहत गोदी का काम और मिलने वाली रोजी मजदूरी कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं।
शासन की ओर से इनमें से कुछ परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है वह भी आधा अधूरा ही कहा जा सकता है। आधे परिवार झोपड़ी बनाकर गुजारा करते हैं।
योजना के तहत बने आवासों में किसी में पलस्तर नहीं है तो किसी में दरवाजा और खिड़की नहीं है। मतलब जिम्मेदार अधिकारी नें अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं किया सिर्फ कागजों में आवास पूर्ण होने की रिपोर्ट भेज दी।
तस्वीरों में ये झोपड़ी विकास के दावे और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी को उजागर करती नजर आती है।
ठंड और बारिश के थपेड़ों के बीच ये कैसे अपने परिवार के साथ गुजारा करते होंगे? तस्वीरों के माध्यम से तंत्र की खामियों को उजागर कर सिस्टम को दुरुस्त करनें का एक प्रयास है।
शिक्षा,आवास,बिजली,पानी ये हर किसी के लिए आवश्यक है ये आभाव में जीवन जी रहे हैं इन्हें शासन की योजनाओं का पूरा लाभ मिलना चाहिए। जो मिल नहीं रहा है।
इनका हर पल हर दिन संघर्ष भरा दिन होता है पानी लेने के लिए रोज इन्हें यहाँ से दूर जाना होता है तस्वीरों में दिखलाई दे रहा नल कनेक्शन एक छलावा से कम नहीं। विकास की बाट जोहते इन लोगों को उम्मीद है कि एक दिन उनके भी अच्छे दिन आयेंगे!
ये सुखेना बाई की झोपड़ी हैं ये यहाँ सालों से अपने परिवार के साथ रह रही है। झोपड़ी पक्के मकान में तब्दील होगी लेकिन कब होगी कहना मुश्किल है।
बहरहाल बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ शासन की योजना यहाँ कागज़ी साबित होती नजर आती है जरूरत है जिम्मेदार अधिकारियों को अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन करनें की और जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि चुनाव के दौरान महज वोट पाने झूठे वादे ना करें बल्कि जीत के बाद पांच वर्षों में उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए आगे आएं ताकि अगले चुनाव में जनता का समर्थन मिले!