प्रेस क्लब चुनाव में जीत हासिल करने…पत्रकारों को 2 BHK मकान देने का वादा निकला झूठा…”सच्” जानने पढें पूरी खबर

झूठ,अफवाह और षड्यंत्र के खिलाड़ी है 2 bhk मकान देने का सपना दिखाने वाले….
बिलासपुर… बिलासपुर प्रेस क्लब का चुनाव 24 जुलाई को होने जा रहा है। चुनाव मैदान में पहली बार 3 पैनल पूरी दमदारी के साथ चुनाव मैदान में है। वर्तमान में सत्ताधारी पैनल सत्ता का मोह नहीं छोड़ पा रहा है यही कारण है कि प्रेस क्लब के मतदाताओं को बरगलाने का काम बड़ी तेजी से शुरू कर दिया गया है।
जबकि सच यह है कि प्रेस क्लब वह संस्था है जो न तो किसी सदस्य पत्रकार को जमीन दे सकती है और ना ही मकान देने का वादा कर सकती है। जबकि यहां पदस्थ पदाधिकारी 15 लाख कीमत का टू बीएचके फ्लैट देने की बात कहकर हंसी का पात्र बन रहे हैं।
दरअसल पत्रकारों को जमीन या मकान देने के लिए अलग से संस्था बनाई गई है जो विधिवत तरीके से शासन से जमीन प्राप्त कर उसे बांटने या फिर जमीन मिलने के बाद किसी निर्माण एजेंसी से मकान बनवाने के बाद उसकी लागत के अनुसार मकान दिला सकती है। मगर बड़बोले प्रेस क्लब के अनुभवहीन पदाधिकारी पत्रकारों को गुमराह कर रहे हैं। इन्हीं महानुभावों द्वारा 2 वर्ष पूर्व भी चुनाव के समय टू बीएचके फ्लैट दिलाने का भरोसा दिलाया गया था मगर बीते 2 साल में इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सका है। फिर से चुनाव सामने हैं फिर वही राग अलापने के लिए यही पदाधिकारी झूठे आश्वासनों का पुलिंदा लेकर पत्रकार साथियों की भावनाओं से खेल रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी को मात्र ज्ञापन देकर और उसकी पावती दिखाकर जमीन मिल जाने और 15 लाख का फ्लैट बनाकर डेढ़ लाख में देने का सब्जबाग दिखाया जा रहा है।
दरअसल इन अनुभवहीन नेताओ को यह तक पता नहीं है की जमीन कैसे मिलती है और उसे किस तरह आवंटन किया जाता है।
आशीर्वाद पैनल के पदाधिकारियों नें बताया कि बिलासपुर प्रेस क्लब गृह निर्माण सहकारी समिति पिछले 2 वर्षों से लगातार शासन और प्रशासन के संपर्क में रहकर जमीन पाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए बकायदा विधिवत रूप से शासन की चेक लिस्ट के अनुसार प्रक्रिया जारी है जो अंतिम स्टेज में है। बीच-बीच में इस संबंध में राजस्व मंत्री और कलेक्टर कमिश्नर सहित एसडीएम तहसीलदार से भी मिलकर प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी कराने का प्रयास किया जाता रहा है।
दरअसल भरोसा दिला देना या बड़े-बड़े दावा कर देने से जमीन हासिल नहीं होती है इसके लिए धरातल पर जाकर मेहनत करनी होती है जो प्रेस क्लब में बैठे पदाधिकारियों ने यह तो किया नहीं हां यह जरूर किया है कि उन्होंने गृह निर्माण सोसायटी के इस प्रयास में जमकर रोड़े अटकाए हैं उसके बावजूद गृह निर्माण सोसाइटी के सभी संचालक और अध्यक्ष इरशाद अली ने पत्रकार साथियों को जमीन दिलाने भरसक प्रयास किया है। अब अंतर विभागीय समिति के अंतिम अनुमोदन के बाद प्रकरण शासन को भेजने की तैयारी कर ली गई है। बिलासपुर कलेक्टर डॉक्टर सारांश मित्तर जी की देखरेख में यह पूरा प्रकरण अब तैयार है। अंतर्विरोध और तमाम परेशानियों के बावजूद प्रेस क्लब गृह निर्माण सहकारी समिति पत्रकारों के हितों के लिए 5 एकड़ जमीन मौके पर सुरक्षित करवा चुका है। फ्री होल्ड स्कीम से उस जमीन को बचाने कई आपत्तियां तहसील में दर्ज कराई गई थी जिसकी वजह से जमीन पत्रकारों के लिए सुरक्षित हो पाई है। यही नहीं खाली पड़ी भूमि पर बेजा कब्जा भी किया जा रहा था जिसे महापौर श्री रामशरण यादव जी के निर्देश पर निगम का अमला और पुलिस प्रशासन ने मौके में जाकर बनाए गए मकानों को तोड़ कर जमीन आवंटन की राह आसान कर दी है।
हालांकि यह सभी को पता है की 7500 स्क्वायर फीट से अधिक की जमीन को बांटने का अधिकार राज्य शासन को है जो कि कैबिनेट में निर्णय लेकर आवेदित संस्था को आवंटित करती है इसलिए जल्द ही यह प्रकरण कैबिनेट में शामिल होने वाला है।
कुछ लोगों ने तो मई में होने जाने वाले प्रेस क्लब के चुनाव को देखते हुए 25 मार्च को एक ज्ञापन माननीय मुख्यमंत्री जी के चौपाल यानी जनदर्शन में देकर उसकी पावती और मुख्यमंत्री कार्यालय से संबंधित विभाग को भेजे गए पत्र को ही आधार मानकर जमीन मिल जाने का दावा कर दिया हैं। यहां सिर्फ दावा ही नहीं किया गया बकायदा कल्पनाओं में ढाई सौ नग टू बीएचके फ्लैट भी तैयार करा लिया गया उसकी कीमत भी खुद तय कर ली गई 15 लाख रुपए की जमीन मकान को डेढ़ लाख रुपए में देने का सौदा भी किया जाने लगा है।
मात्र चुनाव जीतने के लिए इतना बड़ा झूठ अफवाह और चालबाजी करने वाले लोगों को प्रेस क्लब के सदस्य उनके घोषणा करने के बाद से ही समझ गए हैं कि अब सत्ता जाने वाली है इसलिए छटपटाहट हो रही है और बेवजह का लोकलुभावन घोषणा कर लालच देकर वोट लेने का प्रयास किया जा रहा है।
सम्मानीय सदस्यों को बहुत ही स्पष्ट तरीके से यह पता है की जो घोषणा की गई है पूरी तरह झूठ और अफवाह से परिपूर्ण है।
घोषणा कर देने के बाद सोशल मीडिया में जमीन बांटे जाने की खबर जमकर वायरल की जा रही है उनकी इस हरकत का संबंधित अधिकारी भी मजा ले रहे हैं। हालांकि वह इस पर ज्यादा टिप्पणी करना नहीं चाह रहे हैं मगर यह जरूर कह रहे हैं सच्चाई से परे हटकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है।
यह सबको पता है की प्रयास कोई भी कर ले जमीन बांटने या मकान दिलाने का काम गृह निर्माण सोसाइटी ही कर सकती है। राज्य शासन के दिशा निर्देश पूरी तरह स्पष्ट है कि किसी ऐसे क्लब या संस्था को जमीन बांटने का अधिकार ही नहीं है इसके लिए बकायदा संविधान के तहत सोसाइटी तैयार की जाती है। जिसके संचालक मंडल इस कार्य को संपादित कराते हैं।
पूरे 4 साल तक केक काटकर जमा पूंजी को बर्बाद करने वाले पदाधिकारी अब किस मुंह से लोगों से वोट मांगे यह सोच कर उनकी भावनाओं से खेलने का षड्यंत्र करना शुरू कर दिए है उसी का उदाहरण है की 15 लाख रुपए कीमत वाली फ्लेट को डेढ़ लाख रुपए में पत्रकारों को दिए जाने का अफवाह फैलाया गया है।
पत्रकारों को बुद्धिजीवी माना जाता है वे इस बात को भलीभांति समझ चुके हैं कि शासन की कोई ऐसी स्कीम ही नहीं है की 15 लाख रुपए मूल्य का फ्लेट किसी भी व्यक्ति को मात्र डेढ़ लाख रुपए में दिया जा सके।
अनुभवहीन प्रेस क्लब के पदाधिकारी झूठी बातों को इतनी ज्यादा वायरल करा रहे हैं कि मानो तमाम प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद जमीन उन्हें मिल ही चुकी है और उसमें फ्लेट बन चुके हैं बस अब उन्हें बांटना बाकी है।
जबकि धरातल पर एक कदम आगे नहीं बढ़ा जा सका है। शासकीय काम को जिसे काफी जटिल माना जाता है उसे गाल बजा कर हासिल कर लेना मान लिया गया। पत्रकारों के बीच उनकी इस घोषणा को लेकर सोशल मीडिया में ही तीखी आलोचना हो चुकी है।
पत्रकारों ने मांग पत्र के ज्ञापन को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। संबंधित संस्था को बिना विश्वास में लिए जमीन की मांग करना फ्लेट बनवा कर देना और खुद बांटना मजाक बन गया है।
दरअसल पत्रकार साथी यह जान चुके हैं कि उनके हित में जमीन या मकान का कोई भी निर्णय गृह निर्माण सोसाइटी ही ले सकती है इसीलिए उनके बहकावे और झांसे में आने से पहले ही उनसे सवाल पूछने लगी है। जमीन मिलने का आदेश फ्लैट बन जाने का आदेश उस में लगने वाली राशि का आवंटन इस काम को संचालित करने वाली टीम जैसे तमाम चीजें और डॉक्यूमेंट उनसे मांगा जा रहा है। सभी बड़बोलो कि अब बोलती बंद हो गई है उन्हें यह नहीं लग रहा था कि पत्रकारों को ये ज्ञान है की जमीन कौन ला सकता है और कौन उसका आवंटन कर सकता है।
यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि पिछले 2 सालों से गृह निर्माण सोसायटी इस संबंध में क्या-क्या नहीं कर रहा है। मंत्रियों से लेकर अधिकारियों से मांग मौके पर जमीन की सुरक्षा साथियों से लगातार संवाद जैसी तमाम बातें लोगों के जेहन में है उसके बाद भी अफवाह बाजो ने जग हंसाई की चिंता किए बगैर सत्ता को बचाने के लिए बड़े-बड़े दावे कर दिए गए जबकि जमीनी धरातल में हकीकत से उनकी यह घोषणा काफी दूर है।
आशीर्वाद पैनल के अध्यक्ष प्रत्याशी मनीष शर्मा ने तो यह घोषणा भी कर दी है कि अगर 6 महीने के अंदर पत्रकार साथियों को ढाई सौ फ्लेट बनवा कर डेढ़ लाख रुपए में बांट दिए जाने का कोई ठोस शपथ पत्र दे दिया जाए तो वे चुनाव भी नहीं लड़ेंगे और उन्हीं को समर्थन कर देंगे। मगर कोरी अफवाह फैलाने वालों ने जवाब तो देना दूर बात करने भी तैयार नहीं है।
नकारात्मक राजनीति करने वाले प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को अब समझ में आ जाना चाहिए कि लोग उनके झांसे में अब नहीं आने वाले। बेवजह जग हंसाई की यही वजह है।
अच्छा यही है कि वर्तमान पदाधिकारियों को हंसी खुशी से अपनी विदाई करा लेनी चाहिए। दरअसल वर्तमान पदाधिकारी भी उनके पीछे बैठे आकाओं की मर्जी के गुलाम हैं। दरअसल वह नहीं चाहते की उनका रिमोट उनसे छूट जाए इसीलिए इन पदाधिकारियों के पीछे बैठे लोग तरह तरह के षड्यंत्र कर लोगों के बीच अफवाह पैदा कर पत्रकार साथियों को गुमराह कर रहे हैं। अपनी निजी दुश्मनी को भुनाने और प्रेस क्लब में अपनी साख बचाए रखने के लिए साम दाम दंड भेद सभी तरह की कूटनीति को इस्तेमाल कर रहे हैं। न जाने उनको इससे क्या लाभ है मगर यह तो तय है कि लगता है उनकी साख सिर्फ और सिर्फ प्रेस क्लब के जरिए ही बची हुई है।
लिखने पढ़ने में वो क्या है कैसे हैं वही जाने मगर उनको यह भरोसा नहीं रह गया कि वह प्रेस में किए गए कामों से अपनी इज्जत बचाए रख सकेंगे। इसीलिए 450 साथियों के कंधे पर बैठे रहने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए हुए है। ये कौन है प्रेस क्लब के एक एक सदस्य को पता है मगर पीठ पीछे बैठे लोगों को यह पता नहीं है क्योंकि उनकी हर चाल सबको समझ आ रही है। इसलिए पत्रकारों को कोई गांव का किसान या अनपढ़ ग्रामीण न समझे यह बुद्धिजीवियों का वर्ग है जो एक बार धोखा खा सकता है बार-बार नही।