भारतीय ज्योतिष, काल गणना, वर्णमाला, खान-पान, वेशभूषा, परम्पराए वैज्ञानिक कसौटी में सही – ललित

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। एसईसीआर हायर सेकेंडरी स्कूल मे विद्यार्थियों को हिंदुत्व में विज्ञान पर जानकारी देते हुए ललित अग्रवाल ने बताया कि हिंदू,धर्म व हिंदुत्व को सही (वास्तविक) परिपेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है।
भारत में हिमालय से निकलने वाली बारह मासी नदियों का बाहुल्य होने से इसे सिंधुस्थान कहां जाता था। भाषा मुखसुख खोजती हैं। जैसे सप्ताह का हप्ता हुए वैसे ही कालांतर में यहीं अपभ्रंश होकर हिंदुस्थान हुआ तथा यहाँ रहने वाले हिंदू कहलाये।
धर्म का अभिप्रायः किसी भी पूजा पध्दति से नहीं होता। वरन यह करणीय अकरणीय की कसौटियों का मापदंड होता हैं। जैसे प्यासे को पानी पिलाना, गरीबों की मदद करना, रोगी, असहाय की सेवा करना मानव धर्म हैं।
अतः भारत मे रहने वाले प्रत्येक सह्रदय मानव हिंदू हैं। उनके पंथ पूजा पध्दति अलग अलग हो सकती हैं।
अब प्रश्न उठता हैं कि हिंदुत्व क्या हैं। तो हिंदुओ के प्रत्येक सद्गुण यथा नारी का सम्मान, सहअस्तित्व में विश्वास, सर्वे भवंतु सुखिनः, जिओ और जीने दो, सभी को अपने अपने तरीके से ईश पूजा करने देना। बड़ो का आदर करना। भारतीय संस्कृति व संस्कार को अक्षुण रखना आदि ही हिंदुत्व के सद्गुण हैं।
हिंदुत्व में विज्ञान पर विस्तृत जानकारी देते हुए ललित अग्रवाल ने बताया कि अनादि काल से हमारे पूर्वज ज्योतिष, काल गणना, आयुर्वेद, स्थापत्यकला में निपुण थे। तभी तो ढाका के मलमल की साड़ी एक माचिस में तह कर रखी जा सकती थी। तब भी पुष्पक विमान होते थे। तभी हमने ग्रहों , नक्षत्रों की सटीक गणना कर ली थी। काल गणना पर विशेष जानकारी देते हुए अग्रवाल ने बताया कि
साल में दो बार दिन रात बराबर होते हैं। तथा दो बार दोनों में अंतर अधिक होता हैं। उसमे भी केवल 21 मार्च से दिन बढ़ते हैं व रात छोटी होती हैं। भारतीय तिथियों के अनुरूप चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही नववर्ष शुरू होता हैं। पहले 1 जनवरी को नववर्ष नहीं होता था। अपनी बात प्रमाणित करने हेतु उन्होंने बताया कि अंग्रेजी कहावत में मार्च ऑन आगे बढ़ने का प्रतीक हैं।
सेप्टेंबर में सेप्टा याने सात, ऑक्टोबर में ओक्टा ओक्टोपस के आठ का प्रतीक हैं। नवेम्बर नौ तथा डिसेम्बर डेसीमल दस का प्रतीक इस बात का द्योतक हैं कि वास्तव में पहले ग्रेगोरियन कलेंडर भी मार्च से ही शुरू होता था। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि यदि आपको 365 सामग्री 12 लोंगो में वितरित करनी हो तो आखरी वाले को ही कम या ज्यादा सामग्री मिलेगी। फरवरी माह 28 या 29 का होने से स्पष्ट होता हैं कि पहले व 12 महीना होता होगा। तभी उसे बचे कूचे शेष दिन मिलते हैं। भारतीय तिथियों को अंको में लिखने की नई विधि की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि आज युगाब्द 5125 के सातवें माह के दूसरे पक्ष की 9 वीं तिथि दिन सोमवार को अंको के 5125/07-02-09/02 लिखा जाएगा।
अंग्रेजी में ए के बाद बी क्यों आता हैं। इसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं हैं। लेकिन भारतीय भाषाओं यथा देवनागरी लिपि की वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। वर्णमाला के अक्षर क्रमानुसार कंठ, तालु, जीभ, दांत, होट को पहले लघुप्राण फिर दीर्घप्राण अतः में अनुप्राश के साथ स्पर्श करते हुए उच्चारित होते हैं।
*क ख ग घ ड़* – पांच के इस समूह को “कण्ठव्य” *कंठवय* कहा जाता है। क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है।
*च छ ज झ ञ* – इन पाँचों को “तालव्य” *तालु* कहा जाता है। क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू महसूस करेगी।
*ट ठ ड ढ ण* – इन पांचों को “मूर्धन्य” *मुर्धन्य* कहा जाता है। क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी।
*त थ द ध न* – पांच के इस समूह को *दन्तवय* कहा जाता है। क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है।
*प फ ब भ म* – पांच के इस समूह को कहा जाता है- *अनुष्ठान*। क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं।
उन्होंने बताया कि प्राचीन काल से पुरोहित किसी भी पूजा के पूर्व
“जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते भारतवर्षे अमरकंटक प्रदेशे बिलासपुर नगरे रेलवे क्षेत्रे एसईसीआर स्कूले कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे प्रातः काले अमुख गोत्र उतपन्न अहम …” संकल्प कराते आ रहे हैं। पहले शायद हम इसका महत्व नहीं समझते हो लेकिन आज के कम्प्यूटर युग मे आसानी से समझ सकते हैं कि किसी सेव फाईल को देखने हेतु पूरे पाथ को लिखना पड़ता हैं जैसे कम्प्यूटर के किस ड्राइव के किस फोल्डर किस फाईल में वह डाक्युमेंट सेव हैं।
हिंदुत्व की विशेषताओं की जानकारी देते हुए अग्रवाल ने बताया कि हमारे पूर्वज जानते थे कि बड़-पीपल के वृक्ष ऑक्सीजन के भंडार हैं। तुलसी एंटीबायोटिक की खान हैं। मटके या लोटे का जल उत्तम होता हैं। इसीलिए इन्हें पूजा के रूप मे जोडकर कथा के रूप के रूप में प्रचारित कर जनमानस को इसका अभ्यस्त बनाया था।
बैठकर भोजन करने से मोटापा नहीं आता। सुबह जल्दी उठकर बाहर दिशा मैदान को जाने से ऑक्सीजन लेवल अपने आप बढ़ जाता हैं।
अंत में प्राचार्य श्री महेश बाबू ने अपने विद्यालय, स्टॉफ व विद्यार्थियों की ओर से श्री ललित अग्रवाल को तथ्यात्मक जानकारी देने हेतु धन्यवाद देते हुए, इसे जनसामान्य तक ले जाने की आवश्यकता पर बल दिया।