सत्ता सुख के वास्ते हो रही राजनीति…

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। लोकतंत्र में आपका वजूद तभी तक है जब तक आप जनता हैं और जनता होने की जो ताकत है वो प्रधानमंत्री होने के ताकत से भी ज्यादा है अपनी इस ताकत को इतनी आसानी से, इतनी सरलता से आत्मसमर्पण मत कीजिए।
ये लोकतंत्र है यदि आपकी कोई समस्या है तो आप अपनी आवाज बुलंद कीजिए। आजादी के दशकों बाद भी जनहित से जुड़े सैकड़ों सवाल जनता के जेहन में तनाव पैदा कर रहे हैं और हजारों सवाल कागजों में धूल खा रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि जीत के बाद जनप्रतिनिधि झाँकने भी नहीं आते।
यकीन मानिए पहले जनप्रतिनिधि लोगों कि आखों में धूल झोंकते थे अब इमेज झोंकते हैं। जनता नें अपना बहुमूल्य वोट देकर इसलिए तो आपको अपना जनप्रतिनिधि नहीं बनाया था।
नेता जी भीड़ लाने से विजय नहीं मिलती हजारों लाखों कार्यकर्त्ताओं नें अपनी मेहनत से सींच कर आपको इस मुकाम तक पहुंचाया है,आप जीतने के बाद उनकी भी नहीं सुनते।
लोकतंत्र के महापर्व पर ही जनप्रतिनिधियों को जनता के सुखदुःख की याद आती है चुनाव जीतने जनता को किए वादे पिछले 5 सालों में भी पूरे नहीं होते ना ही जनप्रतिनिधियों के दर्शन होते हैं जीत के बाद जनता को किए वादे,उनकी उम्मीद, उनका भरोसा, उनका विश्वास तिल तिल कर टूटता रहता है। 5 सालों बाद लोकतंत्र के महापर्व में ही जनप्रतिनिधियों से मुलाकात होती है वह भी पैर पड़कर आशीर्वाद लेते हुए फिर नए नए वादों के साथ नए अंदाज में।
मन ही मन जनप्रतिनिधियों से एक सवाल करती नजर आती है जनता, की आप जीत के बाद पिछले 5 (1825 दिन) सालों में अपने इस विधानसभा क्षेत्र में कितनी बार आए और आपने जनता से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए क्या कुछ किया?
आश्चर्य की बात तो यह है कि विधानसभा चुनाव लड़ रहे बहुत से प्रत्याशी अपने विधानसभा चुनाव क्षेत्र में प्रचार प्रसार करनें दूसरे विधानसभा क्षेत्र से आते हैं, उजले कपड़े,चमचमाती गाड़ियों का कारवां और लाव लश्कर के साथ आते हैं उन्हें जनता से ज्यादा अपने सुख सुविधाओं का ख्याल होता है। क्या ऐसे जनप्रतिनिधि जनता के सेवक बनेंगे!
अंत में बस इतना ही कि जनता जनप्रतिनिधि के रूप में एक मजबूत, स्थानीय,चरित्रवान और योग्य सेवक चुनना चाहती है “शासक” नहीं।