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मुफ्त की सरकारी शिक्षा…भगवान भरोसे!

ख़बर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। गरीबों के लिए सरकारी स्कूलों को सुनहरे भविष्य का प्रवेश द्वार कहा जाता है लेकिन इसमें दी जाने वाली शिक्षा पर सवाल खड़े होते रहते हैं।कि क्या आपका भी बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता है? तो जान लीजिए कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा पर सवाल खड़े क्यों होते हैं और बच्चों की पढ़ाई क्यों प्रभावित होती है?

एक सच्चाई यह है कि जिले और विकास खण्ड के शिक्षा विभाग में शिक्षक संघ के नेताओं का दबदबा है। यही कारण है कि शहर के दस किलोमीटर के दायरे में संचालित सरकारी स्कूलों में जहां बच्चे नहीं के बराबर हैं वहां भी नियम विरुद्ध जुगाडू शिक्षकों की भरमार है जबकि ग्रामीण इलाकों में जहां बच्चे हैं वहां नियमित शिक्षक के बजाय अगल बगल के स्कूलों के शिक्षक से स्कूल का संचालन हो रहा है।

इस पूरी व्यवस्था को संचालित करने वाले या तो किसी शिक्षक संघ के नेता हैं या फिर किसी बड़े नेता अथवा अधिकारी के संबंधी।

नगर में चल रहे सरकारी स्कूल में बच्चों के अनुपात में (अटैचमेंट)जुगाड़ू शिक्षकों की संख्या कई गुना अधिक है जबकि गांव में जहां बच्चों के शिक्षा का एकमात्र आधार सरकारी विद्यालय ही है, वहां व्यवस्था के तहत उदासीन शिक्षक नियुक्त किए गए हैं अपवाद को छोड़कर।

ज्यादातर स्कूलों में तनख्वाह खोर शिक्षक आते ही नहीं, जहां आते हैं वहाँ पढ़ाते नहीं। पकड़े जाने पर CL, EL और ना जाने क्या क्या खेल खेलते हैं। कबजुल वसूल यानि प्रतिमाह जमा होने वाला वेतन पत्रक कुछ और होता है और पाठ्यांक रजिस्टर कुछ और ही कहानी बयां करता नजर आता है।

एक तरफ देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की पढ़ाई आधी अधूरी छोड़ कर शिक्षकों की चुनाव में ड्टी लगा दी जाती है आधे अधूरे कोर्स के साथ छात्र परीक्षा में बैठने को मजबूर होते हैं।

नेता शिक्षक, नेतागिरी में मस्त रहते हैं, जिससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है!

क्या आपको पता है कि शासन स्तर पर फंड आने के बावजूद ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में बिजली का कनेक्शन नहीं है,पंखे नहीं हैं? बच्चे अब भी ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं? कहीं कहीं तो ब्लैकबोर्ड नहीं है यदि है तो लिखने योग्य नहीं है? शौचालय नहीं है,है तो जर्जर ? खेल का मैदान नहीं,है तो बदहाल,खेल सामग्री नहीं है? पढ़ने को अतिरिक्त कक्ष नहीं,है तो जर्जर? टीचर्स नहीं,हैं तो लेन देन कर अटैच हैं? कुछ मोबाईल फोन पर व्यस्त हैं।

शासन के नियमानुसार 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन शहर में स्थित सरकारी स्कूलों का यदि निरीक्षण किया जाय तो शिक्षकों की भरमार है जिम्मेदार जेब भरने में लगे हैं।

खबर खास की टीम नें पिछले कुछ सालों में 200 से ज्यादा स्कूलों का दौरा किया उसमें सबसे बड़ी बात यह निकल कर सामने आई कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले ज्यादातर शिक्षकों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं? उन्हें खुद भी भरोसा नहीं है अपने ही सरकारी स्कूल की पढ़ाई पर।

कुछ सवाल आपको यक़ीनन परेशान करते होंगे। बच्चों को शिक्षित करने सरकार की तमाम योजनाएं जैसे फ्री एजुकेशन,मुफ्त का स्कूल ड्रेस, मिड-डे मील, किताब, कॉपी और छात्रवृति के बीच स्कूल की पढ़ाई कहां गुम होकर रह गई है?
करोड़ों रुपए हर महीनें शिक्षा अधिकारी और शिक्षकों को बतौर तनख्वाह सरकारी खजाने से दी जाती है लेकिन आज भी सरकारी शिक्षा का स्तर भगवान भरोसे नजर आता है।

अंत में सिर्फ इतना कि यदि इस खबर को जिम्मेदार अधिकारी, नेता पढ़ रहे हों तो कम से स्कूल खुलने के पहले संज्ञान में लें और व्यवस्था सुधारने ठोस कदम उठाए ताकि गरीब लोगों के बच्चे भी शिक्षित होकर विकास की मुख्य धारा से जुड़कर अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकें।

क्रमशः….

सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले कुछ शिक्षक पाँच साल,दस साल और पिछले पन्द्रह सालों से जिला और विकास खंड शिक्षा कार्यालय में अटैच होकर मुफ्त की तनख्वाह ले रहे हैं। वहीं स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति में गरीब बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है लेकिन जिम्मेदार कुम्भकर्णीय नींद में सो रहे हैं!

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