शिकवा,शिकायत के बीच,रेंग रही मुफ्त की सरकारी शिक्षा…!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। सरकार नें सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए मुफ्त की शिक्षा,मुफ्त की बिल्डिंग,मुफ्त का भोजन, मुफ्त में छात्रवृत्ति, मुफ्त में गणवेश, मुफ्त में किताबें, मुफ्त में खेल सामग्री, मुफ्त में पानी,मुफ्त का मैदान,मुफ्त में शिक्षक नियुक्त किए हैं, दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा को बेहतर ढंग से संचालित करने और मोनिटरिंग करनें शिक्षा सचिव से लेकर डायरेक्टर, डीईओ,बीईओ, संकुल समन्वयक और शिक्षकों की पूरी टीम होती है। बावजूद इसके सरकारी शिक्षा का स्तर गरीबों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने में असफल नजर आता है।
जबकि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों के अंदर अच्छे संस्कार पैदा करना,सर्वांगीण विकास करना है।
ज्ञान के मंदिर में मिलने वाली शिक्षा चाहे सरकारी हो या निजी, स्कूल की शिक्षा, शिक्षा होती है। जिसे प्राप्त करनें बच्चे स्कूल जाते हैं। लेकिन शायद हमारी सरकार सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने नाकाम रही है तभी तो निज स्कूलों में पढ़ाने की होड़ आम हो गई है। दूसरी तरफ ना तो सरकार अपने तंत्र के माध्यम से सरकारी स्कूलों में शिक्षा पर सुधार ला सकी है ना ही निज स्कूलों की मनमानी पर नियंत्रण लगा पाई है।
आज हालात ये है कि निज स्कूलों में प्रवेश दिलाने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की चाह में पालक अपना सर्वस्व लूटा रहा है। दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में बच्चों की दर्ज संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है। जो शासन प्रशासन के लिए गंभीर चेतावनी है।
धीरे धीरे निजी स्कूलों में बढ़ती प्रवेश संख्या नें सरकारी स्कूलों में मिलने वाली शिक्षा और मुफ्त की योजनाओं और जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता का भंडाफोड़ कर रख दिया है।
ज्यादातर सरकारी स्कूल जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं,शिक्षा ग्रहण करनें की बजाय,बच्चों को झाड़ू लगाते,पानी भरते,बर्तन धोते,टेबल कुर्सी उठाते,दरी बिछाते आसानी से देखा जा सकता है।
अच्छी खासी तनख्वाह पाने वाले ज्यादातर टीचर्स समय पर स्कूल नहीं आते। आते भी हैं तो वर्कलोड का बहाना बना पढ़ाते नहीं।
अधिकतर स्कूल भवन का अभाव बैठक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है जहाँ भवन हैं वहाँ की छत बरसात में टपकनें की खबर आम होती है।
निजी स्कूलों के टीचर्स से चारगुना अधिक तनख्वाह पाने वाले टीचर्स का क्लास में बच्चों को शिक्षा देने की जगह बच्चों से पाठ को पढ़वाने से लेकर उनके उत्तर को गाईड से देखकर लिखवानें का काम कराया जाता है।
टीचर्स द्वारा समय पर परीक्षा फल का तैयार नहीं किया जाना भी गंभीर लापरवाही को दर्शाता है।
वर्तमान में स्कूलों में अध्ययन रत बच्चों की दर्ज संख्या से पचास प्रतिशत से भी कम बच्चों की उपस्थिति शिक्षा विभाग के उदासीन अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े करती नजर आती है।
अध्ययनरत बच्चों की बैठक व्यवस्था में टूटे फूटे बेंच,टूटे फूटे ब्लैकबोर्ड,पौष्टिकता से परे मध्यान भोजन व्यवस्था, चौकीदार विहीन सुरक्षा व्यवस्था सभी के सभी सवालों के घेरे में नजर आते हैं।
स्कूल केम्पस में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा,सरकारी संपत्ति स्कूल भवन व सामग्री की सुरक्षा व्यवस्था,स्कूल भवन निर्माण की गुणवत्ता से जुड़े सवाल का अनदेखी किया जाना अपने आप में एक बड़ा सवाल है।
फिलहाल सरकार और जिम्मेदार अधिकारियों को उपरोक्त समस्या के निदान हेतु ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा सरकारी शिक्षा व्यवस्था आने वाले कुछ सालों में दस्तावेजों से निकल कर इतिहास की किताबों में सिमट कर रह जायेगी जिसे निजी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों को इतिहास के विषय में पढ़ाया जाएगा कि कभी सरकार द्वारा मुफ्त की योजनाओं से परिपूर्ण सरकारी स्कूल हुआ करते थे जो सरकार और जिम्मेदार की अनदेखी के चलते विलुप्त हो गए।