हे भगवान…5 क्लास के बच्चों को 2 शिक्षक मिलकर 3 अलग अलग कक्ष में पढ़ाते हैं और 93 बच्चे पढ़ते हैं!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। कहते हैं शिक्षा जीवन का सार है इसके बिना सब बेकार है इसलिए आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सरकार नें सरकारी स्कूल खोल रखा है जहां सरकारी शिक्षक द्वारा अध्यापन के माध्यम से बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं ताकि उन अध्ययनरत बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सके।
किंतु बिल्हा विकास खण्ड कार्यालय अंतर्गत संचालित एक सरकारी स्कूल की बात ही अलग है। यहां 5 क्लास को 2 शिक्षक मिलकर 3 अलग अलग कक्ष में पढ़ाते हैं और 93 बच्चे पढ़ते हैं!
अब इस स्कूल का नाम भी जान लीजिए इसका नाम है शासकीय प्राथमिक शाला चंदन आवास राजकिशोर नगर लिंगियाडीह बिलासपुर यहां पहली से पांचवीं कक्षा तक कुल 93 बच्चे दर्ज हैं। इन पांच कक्षाओं के लिए महज तीन कक्ष,दो शिक्षिका पदस्थ हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि यहां शिक्षक और कक्ष के अभाव में पहली और दूसरी एक साथ तीसरी और चौथी एक साथ और पांचवीं कक्षा अलग से लगाया जाता है।
आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिम्मेदार शिक्षा अधिकारी कैसी मोनेटरिंग कर रहे हैं।
सवाल यह है कि दो शिक्षक 5 अलग अलग कक्षा को पढ़ाते कैसे होंगे! और बच्चे पढ़ते कैसे होंगे!
शिक्षिका नें शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था पर बताया कि पढ़ाना है तो जैसे तैसे पढ़ा रहे हैं। ऊपर से प्रभारी प्रधान पाठिका अवकाश में हैं। ऐसे में थोड़ा मुश्किल होता है बच्चों को पढ़ाना और संभालना।
यहां सेंट्रल किचन से पका पकाया खाना आता है। जिसे बच्चे खाते हैं। स्कूल में पहले तार घेरा था अब बाउंड्री वाल नहीं है। शौचालय है लेकिन गंदगी से भरा हुआ है ऐसा नहीं कि यहां अंशकालिक स्वीपर की भर्ती नहीं है। फिर भी स्कूल परिसर के शौचालय में गंदगी पसरी हुई है।
मजे की बात यह है कि यहां स्कूल शिक्षिका द्वारा दर्ज बच्चों की संख्या कुल संख्या 93 बताया गया किंतु उपस्थित 52 बच्चे ही थे। मतलब 41 बच्चे अनुपस्थित थे।
शिक्षिका नें बताया कि टीचर्स की कमी है साथ ही अतिरिक्त कक्ष में बालवाड़ी संचालित किया जा रहा है।
स्कूल भवन पुराना और जर्जर है। भवन में दरवाजे की जगह शटर लगा होने से आवारा कुत्ते यहां घुस जाते हैं।
प्रतिदिन स्कूल डाक तैयार कर संकुल केंद्र बिजौर जाकर जमा करना होता है।
यहां पदस्थ तीनों शिक्षिका लगभग 12 सालों से यहीं पदस्थ हैं उनका स्थानान्तरण अन्यत्र नहीं किया गया है।
अंत में इतना ही कि सुविधाओं के अभाव में भी आर्थिक रूप से कमजोर पालक मुफ्त की शिक्षा लेने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं,बच्चे स्कूल भी आते हैं किंतु शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था के चलते शिक्षा जैसे मूल अधिकार से वंचित हो रहे हैं।
बहरहाल देखना होगा कि कागजों में सरकारी शिक्षा की अलख जगाने का दावा धरातल पर कब कारगर होता है!