मुफ्त की सरकारी शिक्षा…ढाक के तीन पात!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। सरकार की शिक्षा नीति सरकारी स्कूलों में एक बच्चे पर 20 हजार से ऊपर खर्च करती है जबकि प्राइवेट स्कूलों में 16 हजार भी खर्च नहीं होता। फिर भी हमारी सरकार सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने में नाकाम हो रही है। तभी तो निजी स्कूलों में पढ़ाने की होड़ आम हो गई है।
दूसरी तरफ ना तो सरकार अपने तंत्र के माध्यम से सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा स्तर पर सुधार ला सकी है। ना ही बेलगाम निजी स्कूलों की मनमानी पर नियंत्रण लगा पाई है। क्या गरीबों के बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करनें का अधिकार नहीं!
सरकारी स्कूलों में दी जा रही मुफ्त में शिक्षा,किताबें,भोजन, गणवेश देने भर से शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
आज हालात ये है कि निजी स्कूलों में प्रवेश दिलाने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की चाह में पालक अपना सर्वस्व लूटा रहा है दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में मुफ्त की शिक्षा भी बच्चों की दर्ज संख्या और उपस्थिति में लगातार गिरावट देखी जा रही है।
धीरे धीरे निजी स्कूलों में बढ़ते प्रवेश, सरकारी स्कूलों में मिलने वाली अव्यवस्थित शिक्षा का भाँडा फोड़ कर रख दिया है। जो आज चिंता और चिंतन का विषय बनकर रह गया है।
जरूरत है संभागीय संयुक्त संचालक शिक्षा, जिला शिक्षा अधिकारी, विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी, संकुल प्राचार्य,शैक्षिक संकुल समन्वयक, प्राचार्य/प्रधान पाठक एवं शिक्षक गण अपनी अपनी अकादमिक भूमिका एवं जिम्मेदारी का निर्वहन जमीनीस्तर पर ईमानदारी से करनें की है।
अंत में इतना बस इतना कि सरकार को सोचना होगा कि कमजोर आर्थिक वर्ग के बच्चों को बेहतर शिक्षा के माध्यम से उज्ज्वल भविष्य निर्माण का अवसर कैसे मिलेगा!