ना तोर, ना “मोर” प्रशासन है कमजोर!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। राजस्व विभाग में कुछ अधिकारियों के खराब परफॉर्मेंस के चलते पिछले कुछ महीने से विभाग सुर्खियां बटोर रहा है। राजस्व प्रमुख कलेक्टर की उदासीनता राजस्व अधिकारियों के हौसले को बुलंद करनें काफी है। अन्य जिले में हो रही कार्यवाही का फर्क साफ नजर आता है।
कल राजस्व विभाग के दो ज़िले में राजस्व संबंधित मामलों में लापरवाही उजागर हुई। कोरबा में कलेक्टर रानू साहू ने टी एल की मीटिंग में आँकड़ो में भी कमजोर साबित हो रहे व कार्य में उदासीनता बरत रहे तहसीलदार सुरेश साहू का तत्काल तबादला कोरबा से बरपाली करते हुए राजस्व महकमे के तमाम अधिकारी और कर्मचारियों को संदेश दे दिया कि कार्य में उदासीनता व लापरवाही बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
जनहित और शासन के लिए काम नहीं करने वाले तहसीलदार के ख़िलाफ़ कलेक्टर रानु साहू ने सख़्ती से निर्णय लिया और तबदला आदेश कर दिया। इसे कहते है प्रशासनिक क़ाबिलियत और जनहित में काम करनें व लेने तरीका, जो काबिले तारीफ है।
अब वहीं दूसरी तरफ़ बिलासपुर में कल ही राजस्व मंत्री के सामने तहसीलदार रमेश मोर के ख़िलाफ़ शिकायतकर्ताओं ने गंभीर शिकायत किया कि रमेश मोर ने फ़र्ज़ी आँकड़े शासन के सामने पेश करने के लिए किसानों के लगभग १२०० से ऊपर ऑनलाइन नामांतरण केस को पारित भी नहीं किया और न ख़ारिज किया बल्कि नामांतरण की आवश्यकता नहीं है लिखकर सीधे विलोपित कर दिया। जबकि ऐसा करने का नियम ही नहीं है।
अब ये पीड़ित कहाँ जाएं,जो तहसीलदार रमेश मोर को चढ़ावा नहीं चढ़ाए थे वो अब तहसील ऑफ़िस के चक्कर काटते हुए दर दर भटक रहें है।
दूसरी तरफ अफवाहों का बाजार इन अटकलों से गुलजार है कि कलेक्टर बिलासपुर पर तहसीलदार रमेश मोर ने ऐसा क्या जादू किया कि कलेक्टर बिलासपुर इतनी गम्भीर लापरवाही उजागर होने के बाद भी कोई एक्शन नहीं ले रहे हैं।
शिकायतकर्ताओं का मानना है कि कलेक्टर बिलासपुर को इस शिकायत पर तत्काल जाँच का आदेश देना था। ऑनलाइन नामांतरण विलोपन के सिवाय रमेश मोर पर और भी गम्भीर आरोप लगें है जैसे मोपका में ग़लत तरीक़े से धुरी परिवार की ज़मीन को दूसरे के नाम पर चढ़ाने का मामला और भी इसी तरह से अन्य गंभीर मामले सामने आए हैं।
वास्तव में यदि ज़िले का मुखिया कलेक्टर रानु साहू जैसा सक्रिय रहे और जनता की पीड़ा को समझे तो इन तहसीलदारों की मजाल है कि किसी भी प्रकरण में लापरवाही बरतें।
बिलासपुर तहसील में चार साल तक नारायण गवेल अपनी मनमानी करते रहे। सात हज़ार से ऊपर नामांतरण प्रकरणो को सालों सालों तक पेंडिंग रखने के बाद भी एक नोटिस तक प्रशासन ने जारी नहीं किया। जबकि शासकीय सेवक अपना कार्य जनहित में नियमों एवं प्रक्रियाओं की परिधि में रहकर संपादित करता है। तीन साल कांग्रेस की सरकार में हो रहे लापरवाही का खमियाजा केवल इन अधिकारियों के कारण ही भोगना पड़ा।
अब फिर से वही हाल तहसीलदार मोर ने कर दिया। कहते हैं रमेश मोर ने तो नारायण गवेल से भी एक कदम आगे जाकर केस को ही विलोपित कर दिया कि न रहेगी बांस और न बजेगी बाँसुरी।
लोग अब भाजपा और कांग्रेस शासन के दिनों को तुलनात्मक रूप से याद कर रहे हैं उन दिनों तहसील में काम होता था शिकायत पर अधिकारियों को फटकार भी लगाई जाती थी लेकिन अभी के शासकीय सेवकों ने तो तानाशाही मचा कर रखी है और तहसील कार्यालय को निजी एजेंसी बना कर चला रहें है कि कुछ भी कर लो हमारा कुछ नहीं हो सकता।
किसी भी शासकीय सेवक के विरुद्ध जब कोई शिकायत आती है तो कम से कम प्रारंभिक जांच तो होनी चाहिए, स्पष्टीकरण तो मांगा ही जाना चाहिए कि उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही क्यों ना कि जाय!