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हनुमान भक्त के अंतिम संस्कार में पहुंचे बंदर…चिता चबूतरा में बैठ, दी श्रद्धांजलि!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। कहते हैं जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और मनुष्य अपने जन्म से लेकर अपने जीवन के अंतिम घड़ी तक अपने किसी ना किसी आराध्य देव की आराधना करता है।

और मृत्यु उपरांत मृत शरीर को अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम लाकर दाह संस्कार बाद श्रद्धांजलि दी जाती है। इसी दाहसंस्कार के बीच में यदि आराध्य देव के दूत के रूप में अचानक कोई बंदर आ जाय आश्चर्य होता है। ऐसा ही नजारा हमनें अपने कैमरे में कैद कर आप तक पहुचानें का प्रयास किया है।

आप सभी नें मनुष्य के अंतिम पड़ाव मतलब मुक्तिधाम में अक्सर मवेशियों को विचरण करते देखा होगा, कुत्ते भी दिखलाई देते हैं किन्तु हमनें पहली बार किसी मुक्तिधाम के चिता चबूतरा में हनुमानजी के दूत बंदरो को बैठकर शोक व्यक्त करते देखा है।

बात सरकंडा स्थित मुक्ति धाम की है जहां रोजाना दाहसंस्कार के लिए अर्थी सजकर आती हैं साथ में परिजन और मृतक के जान पहचान वाले अंतिम संस्कार में शामिल होते हैं। फिर दाहसंस्कार क्रिया में पांच लकड़ियों की आहूति देकर मृतक आत्मा की शान्ति के लिए मौन रखकर शोक जताया जाता है। ऐसे समय में यदि मृतक के दाहसंस्कार के लिए बने चबूतरे पर एक नहीं दो नहीं बहुत से बंदर दिखाई दें तो आश्चर्य होता है। खासकर तब जब आस पास में कुछ चिताएं धू धू कर जल रही हों और बंदर भी बैठकर शोक जता रहे हों। हमनें ये अदभुत नजारा अपने दोस्त के पिता की अंत्येष्टि में शामिल होने पहुंचे थे तब कैमरे में कैद किया।

हमनें अपने जीवन में कभी भी मुक्तिधाम में बंदरों को आते जाते नहीं देखा फिर भी लोगों से पूछा कि क्या कभी आपने मुक्तिधाम में बंदरों को आते जाते या ऐसे बैठे देखा है, लोगों का जवाब नहीं में था।

बाद में चर्चा के दौरान हमें ज्ञात हुआ कि मित्र के पिता जिनका निधन हुआ था हनुमान जी के अनन्य भक्त थे उपासक थे और शायद बंदर भी अपने हनुमान जी के अनन्य भक्त के अंतिम दर्शन आए थे।

फिलहाल वहां चिता चबूतरे पर बंदरों के बैठे हुए इस नजारे को जिसने भी देखा उसने आश्चर्य प्रकट किया कुछ नें तो श्रद्धा भाव से हाथ जोड़ लिए अंत में सिर्फ इतना ही लिखेंगे कि क्या वाकई में बंदर वहां हनुमानजी के दूत बनकर हनुमान भक्त को श्रद्धांजलि देने आए थे!

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