दो साल से बंद आंगनबाड़ी सच…कागजों में हो रहा संचालित! सहायिका की मौत!या कार्यकर्ता का श्राप!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। कोटा ब्लॉक में एक ऐसा गांव भी है जहां आंगनवाड़ी भवन तो है लेकिन दो साल से बंद पड़ा है। यहां ना बच्चों को शासन की योजना का लाभ मिल रहा है ना ही यहां आंगनबाड़ी सहायिका और कार्यकर्ता पदस्थ हैं। परियोजना अधिकारी भी हैं अनजान लेकिन सरकार की आंखों में धूल झोंकने इस आंगनबाड़ी केंद्र को सुपरवाइजर द्वारा कागज़ों में जरूर संचालित किया जा रहा है।
ग्रामीणों से मिली जानकारी अनुसार आंगनवाड़ी केंद्र ढोलमौहा में विगत पांच वर्ष पूर्व आंगनवाड़ी सहायिका की अचानक मृत्यु हो जाने के कारण उनकी जगह में उनकी बहू द्वारा निशुल्क दो वर्षों तक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के साथ आंगनवाड़ी केंद्र ढोलमौहा में सहायिका के पद पर अपनी सेवा देती रही परंतु विभाग के जिम्मेदार अधिकारी द्वारा ध्यान नहीं दिए जाने पर अंततः उनको अपना काम छोड़ना पड़ा।
इस बीच मात्र आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा केंद्र संचालित होता रहा, लेकिन कार्यकर्ता की उम्र अधिक हो जाने के कारण बिना वैकल्पिक व्यवस्था के विभाग द्वारा उन्हें भी कार्य मुक्त कर दिया गया। इस तरह पिछले दो साल से आंगनवाड़ी संचालित नहीं हो रही है। जिससे ग्राम की गर्भवती शिशुवती महिलाएं एवं छोटे-छोटे बच्चें शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं से वंचित हो रहे हैं।
शासन नें ग्रामीण महिलाओं एवं बच्चों के लिए महत्वपूर्ण योजना मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया है अधिकारियों की लापरवाही से इस अभियान से ही गांव के बच्चे वंचित हैं।
मुख्यमंत्री बाल संदर्भ शिविर में बच्चों के नियमित स्वास्थ्य जांच किया जाता है।लेकिन ग्राम ढोलमौहा में न आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है न सहायिका। वनांचल गांव में बसे भोली भाली आदिवासी गांव की गर्भवती महिलाओं एवं शिशु बच्चों को शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है, आखिर इनके जिम्मेदार कौन ?
झूठा आश्वासन मुफ्त में काम
ऊपर तसवीर में दिखाई दे रही महिला रामकली है जो सप्ताह में दो दिन, बंद पड़े आंगनबाड़ी केंद्र के रजिस्टर में दर्ज 29 बच्चों के लिए भोजन पकाती है और उन्हें अपने घर के आंगन में खिलाती भी है इसे सोनपुरी आंगनबाड़ी केंद्र की सहायिका द्वारा ऐसा करने के लिए कहा गया है। इसे झूठा आश्वासन भी दिया गया है कि तुम्हारी नियुक्ति कार्यकर्ता के रूप में की गई है लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है मुफ्त में बच्चों के लिए भोजन जरूर बनवाया जा रहा है। ना जाने कितने आंगनबाड़ी केंद्र में इसी तरह झूठा आश्वासन देकर भोले भाले ग्रामीण महिलाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा होगा इस बात की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि सच सामने आए और दोषियों पर कठोर कार्यवाही हो।
ग्रामीणों नें बताया कि एकीकृत बाल विकास परियोजना कोटा द्वारा तीन बार आंगनवाड़ी हेतु सहायिका, कार्यकर्ता के लिए विज्ञापन निकाला गया हर बार योग्य ग्रामीण महिलाएं अपना आवेदन भी जमा किए पर अभी तक कार्यकर्ता सहायिका की नियुक्ति नहीं की गई है।
गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं!
ढोलमहुआ आंगनबाड़ी की पूर्व कार्यकर्ता शैल कुमारी दुबे का कहना है कि उन्होंने सहायिका की मृत्यु के बाद पांच साल तक कार्यकर्ता और सहायिका दोनों पदों की जिम्मेदारी निभाते हुए आंगनबाड़ी केंद्र को संचालित किया फिर 24/11/2020 को उन्हें निकाल दिया गया।
वो महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही को उजागर करते हुए कहती हैं कि उन्हें अक्टूबर, नवंबर 2020 का देयक भुगतान नहीं किया गया है इतना ही नहीं वर्ष 2017,18 और 19 में उन्होंने बतौर BLO काम किया था उसका 3 साल पारिश्रमिक का भुगतान आज तक लंबित है। गरीबों की कोई नहीं सुनता।
गांव के ही निरंजन सिंह पैकरा कि पिछले दो साल से आंगनबाड़ी केंद्र बंद है, यहां पदस्थ सहायिका का निधन पांच साल पहले हो गया था तब से कार्यकर्ता द्वारा ही आंगनबाड़ी संचालित किया जा रहा था। दो वर्ष पूर्व उसे भी हटा दिया गया है। इसलिए पिछले दो साल से गर्भवती महिलाओं एवं छोटे छोटे बच्चों को महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित शासन की योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। महिला बाल विकास विभाग के जिम्मेदार अधिकारी को चाहिए कि शीघ्र ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका की नियुक्ति की जाय ताकि महिलाओं और बच्चों को शासन की योजना का लाभ मिल सके।
बहरहाल ग्रामीणों ने शासन प्रशासन एवं संबंधित विभाग से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका की नियुक्ति कर आंगनवाड़ी को संचालित करने की अनुरोध किया है,ताकि गांव के नवनिहाल एवं गर्भवती महिलाओं को शासन की योजनाओं का लाभ मिल सके।