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कुकुरमुत्ते की तरह खुल गए अवैध कोल डिपो…रखवाले ही कुभकर्णीय नींद में…पनप रहा कोयले का अवैध कारोबार!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। खनिज विभाग मुख्यमंत्री के पास है खदान से निकला कोयला एक खनिज संपदा है और इसी कोयले से सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है लेकिन इसकी बड़े पैमाने पर अवैध रूप से चोरी भी होती है और अफरा तफरी रोकने के लिए खनिज विभाग और पुलिस विभाग के अधिकारी की नियुक्ति की गई है। लेकिन खनिज विभाग और पुलिस महकमा इस कोयला की चोरी को रोकने में नाकाम साबित हो रही है।

जानकारी के अनुसार जिले के दो प्रमुख थाने एक हिर्री दूसरा रतनपुर अंतर्गत क्षेत्र में कोयला की दलाली करनें वालों नें कई अवैध कोल डिपो,खोल दिए हैं यहां रोज रात में चोरी का हजारों टन कोयला डंप हो रहा है। खनिज विभाग के अधिकारियों को रात को गुलज़ार होने वाले कोयला के अवैध डिपो से कोई सरोकार नहीं है रहा, सवाल कोयला के अफरा तफ़री से तो पुलिस विभाग भी जानकर अनजान बनी रहती है कभी कभार पुलिस व खनिज विभाग कार्रवाई दिखावा करते नजर जरूर आते हैं।

उपरोक्त दोनों थाना क्षेत्र में सड़क किनारे कई अवैध कोल डिपो कुकुरमुत्ते की तरह संचालित हो रहे हैं। यहां रोजना हजारों टन अवैध कोयला डंप होता है,छोटे उद्योगों, ईंट भट्‌ठों आदि में इसका उपयोग किया जाता है।

जबकि कोयला खदानों से निकलने वाले ट्रकों के ड्राइवर, लिंकेज में कोयला खरीदने वाले उद्योगों के प्रतिनिधियों से मिलीभगत कर डिपो संचालक चोरी का कोयला खरीदते हैं, इसकी जगह कोयले का चूरा,पत्थर,में पानी मिला दिया जाता है। यही वजह है कि लिंकेज में कोयला खरीदने वाले उद्योगों तक स्तरीय कोयला नहीं पहुंच पाता। जबकि एसईसीएल की साइडिंग में खरीदी करने वाले उद्योगों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में कोयले की सैंपलिंग कर जांच की जाती है।

अवैध रूप से रोज हजारों टन कोयले की खरीदी-बिक्री पर एसईसीएल के अधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि साइडिंग से कोयला निकलने के बाद कंपनी जिम्मेदार नहीं हैं।

इधर, अवैध कोल डिपो पर रोक लगाने के लिए जिम्मेदार पुलिस और खनिज विभाग सिर्फ दिखावे की कार्रवाई करते हैं। दिखावे के लिए अवैध डिपो बंद करवाते जरूर हैं, लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही वे दोबारा खुल जाते हैं। अगर पुलिस कार्यवाही करती भी है तो खनिज विभाग के अधिकारी पुलिस के कार्यवाही का इंतजार करते नजर आते हैं।

एसईसीएल कोयला बेचने के लिए ऑनलाइन टेंडर जारी करता है। कोयला खरीदने वाली कंपनियों, उद्योगों को कोयला एसईसीएल की संबंधित खदान की साइडिंग से उठाना पड़ता है। खरीदी करने वाली कंपनियाें, उद्योगों के प्रतिनिधि भी यहां मौजूद रहते हैं। उनकी मौजूदगी में कोयले की सैंपलिंग यानी जांच होती है। साइडिंग से ट्रेनों की रैकों या हाइवा-ट्रकों के जरिए कोयला संबंधित जगहों के लिए रवाना कर दिया जाता है, लेकिन यहां परिवहन के दौरान सिस्टम की कमजोरी का फायदा कोयले की कालाबाजारी करने वाले उठाते हैं।

एसईसीएल की सीमा से बाहर निकलते ही बड़े पैमाने पर कोयला चोरी का खेल शुरू होता है। चोरी किए गए कोयले को अवैध कोल डिपो में डंप कर रखा जाता है।

बिलासपुर जिले में ऐसे कई अवैध कोल डिपो चल रहे हैं, जहां हर समय कई टन कोयला अनेक रूपों में उपलब्ध रहता है। छोटे उद्योगों, ईंट भट्ठों सहित ईंधन के सहारे संचालित किए जा रहे कारोबार में चोरी के कोयले का उपयोग किया जाता है।

एसईसीएल की खदानों से उद्योगों को कोयला लिंकेज पर मिलता है। उद्योगपतियों के पास रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती इसलिए वह इन्हें डंप कर रखते हैं। कुछ उद्योगपति कोयला डंप के लिए वह खनिज विभाग से अपने नाम पर भंडारण का लाइसेंस लेते हैं और अपने परिचित को यह काम सौंप देते हैं। परिचित इसका फायदा उठाता है। वह लिंकेज का कोयला डंप करने के नाम से डिपो में कोयले का अवैध कारोबार शुरू कर देता है। डिपो से वह जरूरत के हिसाब से उद्योग को कोयला तो भेजता है, पर यह मिलावटी होता है। उद्योगों के नाम से खदान से अच्छे ग्रेड का कोयला सप्लाई होता है। इनकी कीमत तकरीबन 6-7 हजार रुपए टन होती है। वहीं चूरा व पत्थर की मिलावट वाला कोयला आधी कीमत पर मिलता है। डिपो संचालक दोनों तरह का माल रखता है। कोयला उद्योग में भेजते समय वह एक नंबर के कोयले में दो नंबर का कोयला मिला देता है। ट्रक चालक भी इसका फायदा उठाते हैं। वे उद्योगपतियों का एक नंबर का कोयला ऐसे डंपिंग डिपो में किलो के हिसाब से बेच देते हैं। डिपो संचालक कोयले की जगह उसकी गाड़ी में काला पत्थर या डस्ट मिला देता है।

कोयले के अवैध कारोबारियों को पकड़ने का काम पुलिस व खनिज विभाग का होता है, लेकिन ऐसा लगता है कि कारोबारी दोनों को अपनी ओर मिला लेता है।

खदान से निकला लिंकेज का कोयला संबंधित डिपो या फैक्ट्री में जा रहा है या नहीं, इसे लेकर एसईसीएल का रवैया बेहद गैर जिम्मेदाराना है। एसईसीएल के अधिकारी साफ कहते हैं साइडिंग से निकलने के बाद कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं है। जबकि एसईसीएल का अपना विजिलेंस डिपार्टमेंट है। पुलिस और खनिज विभाग के साथ तालमेल बनाकर काम करने से कोयले की अवैध खरीदी-बिक्री पर रोक लगाई जा सकती है,और सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी की जा सकती है इससे उद्योगों को भी सही कोयला मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा।

खनिज विभाग कार्रवाई के नाम पर चेतावनी
देकर छोड़ दिया जाता है जबकि कोल डिपो के लिए खनिज विभाग ही लाइसेंस जारी करता है, इसके लिए जरूरी नियम व शर्तें होती हैं। डिपो संचालक को इसका पालन करना होता है। लाइसेंस के लिए खुद की जमीन होना जरूरी है। इसके अलावा उसे भंडारण क्षमता भी बताना पड़ता है। यहां पर्यावरण प्रदूषण विभाग का एनओसी भी जमा करना पड़ता है। खनिज विभाग को इन डिपो में जाकर लाइसेंस की शर्तों के पालन की जांच करनी होती है। गड़बड़ी मिलने पर वह लाइसेंस निरस्त कर सकता है। लेकिन खनिज विभाग केवल खानापूर्ति की कार्रवाई करता है।

कोयला की अफरा तफरी के मामले सामने आने पर जिला खनिज अधिकारी का रटारटाया बयान आता है कि पुलिस ने जिन डिपो को सील किया था, लाइसेंस के नियमों का उल्लंघन करने पर उनके संचालकों से जुर्माना वसूला गया था। उन्हें आगे किसी तरह की गड़बड़ी करने पर लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी दी गई है।

कभी कभी खनिज निरीक्षक द्वारा कोयले का अवैध परिवहन करते हुए वाहन को पकड़ा जाता है अवैध कोयला परिवहनकर्ता चालक का नाम पता, वाहन क्रमांक अवैध परिवहन का क्षेत्र,खनिज की मात्रा, अवैध परिवहन किए गए खनिज की रॉयल्टी राशि, अवैध परिवहन किए गए खनिज का बाजार मूल्य और प्रस्तवित समझौता राशि वसूल कर छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया को पूरा करने में तीन से चार दिन ही लगते हैं। वहीं कुछ मामलों में दान दक्षिणा मन मुताबिक नहीं मिलने से दो से तीन महीने लग जाते हैं।

पुलिसिया कार्यवाही होने पर पुलिस,अवैध कोल डिपो सील तो करती है,लेकिन वे फिर से खुल जाते हैं अवैध रूप से कोल डिपो संचालित करने, कोयले की कालाबाजारी की जानकारी मिलने पर पुलिस सीधी कार्रवाई कर सकती है। चोरी या गड़बड़ी के संदेह पर वह खनिज विभाग से तस्दीक कराती है और एफआईआर दर्ज कर मामले को कोर्ट में पेश करती है।

बिलासपुर की बात करें तो पुलिस अफसर संबंधित थानेदारों को चेतावनी देते हैं कि उनके क्षेत्र में यह कारोबार फिर से शुरू हुआ तो वे जिम्मेदार होंगे। कुछ समय बाद अचानक सभी डिपो एक-एक कर खुलते गए। यहां पहले की तरह फिर से अवैध कोयले का कारोबार शुरू हो जाता है।

ऐसे मामलों में अक्सर पुलिस अधिकारी का कहना होता है कि हमने सभी अवैध कोल डिपो को बंद करने की माइनिंग विभाग को चिट्ठी लिखी थी। इसके बाद फिर से खुल जाना समझ से परे है। जांच करने कलेक्टर ने पुलिस व खनिज विभाग की ज्वाइंट टीम बनाई है। अब जहां भी कोयले की कालाबाजारी की सूचना मिलेगी खनिज विभाग को साथ लेकर कार्रवाई की जाएगी।

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