राजस्व विभाग का कारनामा…पटवारी प्रतिवेदन में हुई भूल…और बिक गई सरकारी सड़क…अब खामियाजा भुगतेगा खरीददार!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। भूराजस्व सहिंता में बनाए गए नियमों से परे जाकर राजस्व विभाग के अधिकारी और पटवारी काम करते नजर आते हैं और विवादों और सुर्खियों में बने रहते है। शिकायत से खुलासा होता है कि तहसीलदार और पटवारी अपने प्राथमिक कर्तव्य का पालन करना भी जरूरी नहीं समझते।
जिस शिकायती मामले को लेकर हम बात कर रहे हैं वह तत्कालीन और विवादित तहसीलदार नारायण गवेल और वर्तमान बहतराई पटवारी अनिल डोडवानी से जुड़ा हुआ है।
इन पर आरोप है कि इन्होंने बहतराई पटवारी हल्का नम्बर 48 में स्थित पीडब्ल्यूडी की सरकारी डामरीकृत सड़क भूमि को समतल किए जाने पर अपनी आंखें बंद रखी और सड़क को ज़मीन में तब्दील करनें दिया।
दरअसल बिलासपुर के बहतराई में अविभाजित मध्य प्रदेश सरकार के समय खसरा 310/2 में पी डब्लू डी विभाग ने बाकायदा भूमि अधिग्रहण कर मुआवजा देकर सड़क का निर्माण किया था।
सूत्रों की माने तो राजस्व विभाग के इन जिम्मेदार अधिकारी और पटवारी नें जानबूझकर इस सरकारी सड़क की बिक्री और खरीदी पर राजस्व नियमों की अनदेखी करते हुए पटवारी प्रतिवेदन पर सरकारी सड़क की चौहद्दी बना कर सड़क भूमि को ही बेचने का षड्यंत्र रच डाला।
ये आपसी तालमेल से अपने षड्यंत्र में सफल भी हो गए किंतु एक शिकायत से इनकी पोल खुल गई। जानकारी मिली कि इनके षड्यंत्र से सरकारी गाइड लाइन के अनुसार शासन को तकरीबन 2 करोड़ 45 लाख रुपए की आर्थिक हानि हुई है।
इस पूरे मामले की शिकायत सामाजिक संस्था ने बिलासपुर कलेक्टर डॉ सारांश मित्तल और एसीबी मे की है।
भूराजस्व सहिंता में बनाए नियमानुसार पटवारी ने नामांतरण का प्रतिवेदन देते समय इस बात को क्यों छिपाया की यह पी डब्ल्यू डी की सड़क है।
नामांतरण का काम अधीक्षक भुअभिलेख ने किया था जिन्हें इसका अधिकार ही नहीं था।
इतनी बड़ी लापरवाही उजागर होने पर इधर राजस्व विभाग ने भी अपनी गलती मानते हुए अब जाकर त्रुटि को सुधार किया है लेकिन तब तक तो कागजों में सरकारी जमीन बिक चुकी है।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि उस समय जब रजिस्ट्री सही थी,पटवारी का रिपोर्ट सही था तभी तो नामांतरण हुआ तो अब उसे ख़ारिज करने की क्या ज़रूरत। राजस्व महकमा अपने अधिकारी और पटवारी की गलती छिपाने के लिए अब सुधार का राग अलाप रहा है?
जिसने राजस्व विभाग के जिम्मेदार द्वारा दस्तावेज ओके होने का ग्रीन सिंग्नल दिया तब क्रेता और विक्रेता द्वारा ज़मीन की खरीदी बिक्री की गई मतलब इन अधिकारी और पटवारी की लापरवाही से उनके साथ धोखाधड़ी हुआ।
राजस्व विभाग का पटवारी अच्छी तरह से जानता था कि जमीन है ही नही,उस पर सरकारी सड़क बन चुका है। उसके बाद भी पटवारी ने अपने द्वारा दिए गए प्रतिवेदन में इस बात को छिपाया।
उधर रजिस्ट्रार ने भी बिना मौके पर गए भौतिक सत्यापन किए जाने का रिपोर्ट दे दिया और रजिस्ट्री कर दी गई।
इस फैसले से खरीददार की खून पसीने की कमाई का पैसा डूब गया। जिम्मेदार कौन?अब कौन लौटाएगा रकम?
शिकायतकर्ता का मानना है कि राजस्व अधिकारियों ने सरकारी जमीन कि चौहद्दी बना कर पीडब्ल्यूडी की डामरीकृत सड़क को षड्यंत्र पूर्वक कूट रचना दस्तावेज के आधार पर क्रेता विक्रेता को बेचनें दिया।
बहरहाल ऐसा लगता है कि इस गड़बड़ी में शामिल लापरवाह पटवारी और अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करने की बजाय उनको बचाया जा रहा है जो राजस्व प्रमुख की भूमिका पर सवाल खड़े करता है!