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शुल्क जमा करने के बाद भी, नहीं दे रहे आर.टी.आई. की जानकारी… कलेक्टर के नीचे खनिज शाखा की लालफीताशाही!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। शासनतंत्र की प्रशासनिक प्रक्रियाओं के विषय में नागरिकों को जानने का अधिकार सूचना के अधिकार अधिनियम में दिया गया है किंतु खनिज विभाग की हालत इन दिनों “आगे नाथ ना पीछे पगहा” की भांति हो गई है। मतलब विभाग प्रमुख का नियंत्रण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर बिल्कुल भी नहीं रहा, ऐसा लगता है। विभाग के कर्मचारी अनुशासन में नहीं नजर आते।

ये सब कुछ इस वजह से लिखा जा रहा है क्योंकि खनिज विभाग में 14/9/21 और 23/9/21 को सूचना के अधिकार 2005 के तहत आवेदन कर जानकारी मांगी गई थी। नियमानुसार एक माह (30) दिन बाद भी जानकारी नहीं प्राप्त होने पर,विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को याद दिलाया गया कि साहब सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया गया था जानकारी देने संबंधी कोई पत्र नहीं प्राप्त हुआ है।

याद दिलाया तो उन्हें याद आया

याद दिलाने पर अधिकारी कुम्भकर्णीय नींद से जागे, मातहतों को निर्देश दिया, फिर सो गए। फिर कुछ दिनों बाद फिर याद दिलाया गया कि साहब आपके निर्देश के बाद भी अब तक कुछ नहीं हुआ।

नींद में खलल

साहब की नींद में खलल के परिणामस्वरूप कुछ दिनों बाद दस्तावेज अवलोकन किए जाने का पत्र मिला। कार्यालय में कर्मचारियों के बीच दस्तावेज अवलोकन करनें के साथ चिन्हांकित भी कर दिया गया और उसके बाद मिले पत्र अनुसार राशि भी पटा कर इस उम्मीद से रसीद ले ली गई कि अब देर सबेर दस्तावेज मिल ही जाएंगे।

उम्मीद में फिरा पानी

साहब, उम्मीद पर एक बार फिर पानी फिर गया क्योंकि अवलोकन और दस्तावेजों को चिन्हित करनें के बाद फिर पत्र प्राप्त हुआ कि यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि आपको एक पृष्ठ की जानकारी चाहिए या पूरे प्रकरण की जानकारी चाहिए स्पष्ट करें।

कौन लेगा संज्ञान

सूचना के अधिकार कानून की जो धज्जियाँ खनिज विभाग के अधिकारियों के द्वारा उड़ाई जा रही है वैसा अन्य विभागों में देखने को नहीं मिलता।

16 साल से बोर्ड नहीं

खैर जो विभाग 16 साल सूचना के अधिकार का बोर्ड अपने कार्यालय में नहीं लगाया हो उससे उसके पालन किए जाने की उम्मीद किया जाना बेमानी होगा।

पैसे लेकर भी नहीं दी जानकारी

18/11/21 को विभाग द्वारा एक मोटी रकम जमा करने के बाद भी जानकारी संबंधित दस्तावेज आज दिनांक तक अप्राप्त हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी

दस्तावेज को लेकर पूछे जाने पर अधिकारी झूठे हर्ष का प्रदर्शन अर्थात कृत्रिम हंसी हंसते हुए आश्वासन का झुनझुना तो थमा देते हैं लेकिन दस्तावेज नहीं। फिर दस्तावेज हस्ताक्षर करने की बात कहते हैं,दूसरी ओर कर्मचारी हस्ताक्षर हो गया है बतलाता है।

उत्तरदायी सुनिश्चित करें

सच कहते हैं कि जब विभाग प्रमुख का नियंत्रण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नहीं होता तो कर्मचारी भी गोलमाल जवाब देकर अपने काम से पल्ला झाड़ते नजर आते हैं ऐसा यहाँ भी होता नजर आ रहा है।

दक्षता की कमी!

ऐसा कहा जाता है कि जो अधिकारी अपने कार्यालय की व्यवस्था का अवलोकन नहीं करता,उदासीन, लापरवाह कर्मचारियों को दंडित नहीं करता,श्रेष्ठ कर्मचारियों को पुरस्कृत नहीं करता,उस अधिकारी की उपेक्षा होने लगती है।

फिलहाल सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी कब तक मिलेगा कह पाना मुश्किल है लेकिन जिस तरह से सूचना के अधिकार अधिनियम का पालन करनें में लापरवाही बरती जा रही उससे सरकार और विभाग की किरकिरी जरूर हो रही है। समय रहते इस दम तोड़ते अधिनियम को बचाने इसका कड़ाई से पालन कराने जिम्मेदार अधिकारियों को आगे आना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब सूचना के अधिकार अधिनियम का बोर्ड तो कार्यालयों में लगा हुआ दिखाई देगा किंतु इस अधिनियम के तहत लोग आवेदन करना बंद कर देंगे वजह,लचर प्रशासनिक व्यवस्था से लोगों का भरोसा उठ जाएगा।

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