ना पानी है, ना बिजली, ना है कोई मकान.. खतरे में है जान… फिर भी बने हुए हैं मेहमान… प्रशासन जान कर भी अनजान।

खासखबर छत्तीसगढ बिलासपुर…वर्ष 1984 से 2002 के बीच बिलासपुर विकास प्राधिकरण बीडीए दवारा एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.राज किशोर वर्मा के नाम पर राजकिशोर नगर को बसाया गया था।
18 वर्ष के कार्यकाल मे तुलसी,चंदन,परिजात,गुलमोहर,पलाश,केशर,हरसिंगार जैसी सुगंधित नामों से कालोनियां बसाई गई। इन कालोनी वासियों के सुविधाओं के लिये लाखों रुपये खर्च कर राजकिशोर डाकघर के निकट एक सब्जी बाजार शेड का निर्माण किया गया था जिस पर सब्जी बाजार तो कभी नहीं नहीं लगा, लेकिन गरीब, बेघर, बेसहारा और जरुरतमंद लोगों का आशियाना जरुर बन गया।
समय के अन्तराल से यह सब्जी बाजार इन गरीब लोगों का निशुल्क आशियाना बन गया है चाहे कड़कड़ाती ठंड हो या मूसलाधार बरसात या फिर गर्मी का मौसम ये बगैर बिजली,पानी,शौचालय के अभाव में यहां जीवन काट रहे हैं। मजे की बात ये हैं कि यहां रहने वाले लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है, ना ही निगम प्रशासन ना ही पंचायत प्रतिनिधि इस ओर कोई ध्यान देते है।
एक ओर सरकार का दायित्व है कि वह हर नागरिक को मुलभूत सुविधाऐं उपलब्ध कराये लेकिन यहां रह रहे लोगों के जीवन व्यापन को देखकर तो ऐसा लगता है कि ये शायद सरकार के अंग ही नहीं हैं,ना तो शासन है ना प्रशासन। आखिर इन गरीब लोगों की सुध लेगा कौन?
सवाल ये कि न्यायधानी में इन्हे वो तमाम सुविधाऐं उपलब्ध करायेगा कौन जो उनका संविधानिक अधिकार है। कब ये लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर जिंदगी जीते रहेंगे।
ये वो लोग है जिनके पास ना रहने को घर है, ना पीने का पानी है, ना शौचालय है, ना बिजली है। ऐसे में बिल्हा विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत लिंगियाडीह राजकिशोर नगर डाकघर के निकट का यह सब्जी बाजार और इसमें मजबूरी में रहने वाले लोगों को सुविधाऐं उपलब्ध कराये जाने की जिम्मेदारी किसकी है। नगर निगम,जनपद पंचायत,ग्राम पंचायत जिला प्रशासन,आखिर किसकी जिम्मेदारी है।
इतनी गंदंगी भरे वातावरण और खंडहर में तब्दील हो चुके इस जर्जर सब्जी बाजार को अपना आशियाना बना जीवन निर्वाह कर रहे लोगों की सुध आखिरकार कौन लेगा?
इन पच्चीस वर्षो में पांच पंचायत चुनाव,पांच विधानसभा चुनाव और पांच लोकसभा चुनाव संपन्न हो गये हैं। सांसद, विधायक, महापौर, और ना जाने कितने सरपंच चुन लिये गये लेकिन इनमें से किसी भी ने इनकी सुध नहीं ली।
केंद्र औऱ राज्य शासन की तमाम योजनाऐं इन्हें देखकर बेमानी नजर आती हैं जब योजनाओं को कागजों में आंकड़ों के रूप में पेश कर प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी शासन को झूठी रिपोर्ट भेजने का काम करते हैं।
कहते हैं कि बीस सूत्रीय कार्यक्रम पूर्व प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी नें गरीबी हटाओ नारे के साथ 1975 में साथ लागू किया था। जो आज 44 सालों बाद भी गरीबी हटाओ नारे के साथ लागू है लेकिन गरीब आज भी गरीब ही बना हुआ है।
क्या देखा हमनें…..
यहां इस जर्जर सब्जी बाजार के शेड में रहने वाले लोगों में ज्यादातर लोग भीख मांगकर गुजारा करते हैं वहीं कुछ ऐसे बच्चे दिखे जो सरकारी स्कुल का गणवेष पहने थे उन्होने बताया कि वो पास के सरकारी स्कूल में पढते हैं। मजे की बात ये है कि जहां एक ओर हमारा शहर स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल है वहीं आज भी ये गरीब लोग अपना भोजन पकाने लकड़ी का इस्तेमाल करते है। कुछ बच्चे बुढे कबाड़ बिनकर,उसे बेचकर गुजारा करते हैं कुछ लोग आसपास मजदुरी करते है। कुल मिलाकर ये सब्जी बाजार इन गरीबों का ऐसा आशियाना है जहां इन्हे किराया तो नहीं देना पड़ता।
जुगाड़ से जी रहे जिंदगी….
पास के नल से पीने का पानी लेकर आते है, सामने ही कोयला उत्पादन की सबसे बडी कंपनी का तमगा लटकाने वाले एसईसीएल का गार्डन है जो 1994 में हरियाली योजना के तहत विकसित तो जरूर किया गया लेकिन रख रखाव के अभाव में बदहाली का शिकार हो जाने से अब इन बेसहारों का शौचगाह बना हुआ है। बगल में बने कॉम्प्लेक्स के सार्वजनिक नल पर स्नान करते है। चंदा की रौशनी में निर्भय होकर सोते है, खुले आसमान से बेहतर लगता है इन्हे इस जर्जर जानलेवा खंडहरनुमा सब्जी बाजार जहाँ ये कभी अपनी किस्मत तो कभी शासन प्रशासन को कोसते हुए रात गुजारते हैं।
शासन प्रशासन के बडे़ बडे दावे यहां का नजारा देखकर ही अपने आप धरासायी हो जाते है। वैसे तो ये बीडीए से हस्तातरित निगम के दायरे में हैं यहां बीडीए का पुराना दफतर है जिसे अब नगर निगम दवारा संचालित किया जा रहा है। यहां पेयजल,स्ट्रीट लाईट,सफाई,बिजली, के रखरखाव की देखरेख निगम के अधिकारी करते हैं,लेकिन अधिकारियों नें कभी भी बाजार या बाजार में अभाव का जीवन जी रहे लोगों की सुध नहीं ली।
फिलहाल विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव,निगम चुनाव भी हो गया खुद को जनता का सेवक कहने वाले नेताओं के बड़े बड़े लोकलुभावन चुनावी वादे मतदाताओं से किये जाते रहे हैं लेकिन ऐसे ही जर्जर बाजार शेड में ना जाने कितनी जिंदगियां अपने माननीयों से उत्थान की आस लिये बैठी हैं कि कोई तो आएगा जो उन्हें उनके संविधानिक अधिकार दिलाने उनके हक की लड़ाई लड़ेगा।
बहरहाल देखना होगा कि सरकार के कर्तव्यों का पालन कराने वाला शासन और प्रशासन कैसे और कब इन गरीबों की सुध लेता है या नहीं ये तो आने वाला समय ही बतलाएगा।