जमीन सीमांकन का नया फार्मूला… सीमांकन के बदले एक डिसमिस जमीन…मौके पर जमीन का सीमांकन और खूंटा गाड़ कर देने, जमीन दलाल देता है गारंटी!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। आपने एक कहावत तो सुनी होगी कि “भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं है।”किंतु इसके उलट राजस्व विभाग में किसी भी प्रकरण के निपटारे को ले दे कर देर, देर भी है और अंधेर तो मत पूछिए साहब….साल, दो साल और बहुत से प्रकरण में बाप के बाद बेटा और फिर बेटे का बेटा….
जिले में रिश्वतखोरी के आरोपों और एसीबी के मकड़जाल से घिरे राजस्व विभाग के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने जमीन दलालों के साथ मिलकर “जमीन सीमांकन” किए जाने, का नया फार्मूला तैयार कर लिया है। खबर चौकाने वाली है!
खासखबर को मिली जानकारी के अनुसार राजस्व विभाग के कुछ अधिकारियों आर आई,पटवारियों और जमीन के दलालों नें मिलकर सीधे साधे भोले भाले आवेदकों द्वारा सीमांकन के लिए दिए आवेदन पर पहले तो आवेदक की जमीन का मौका देखकर उससे होने वाली काली कमाई का आकलन करते हैं फिर राजस्व नियमों के तहत जमीन की नाप जोख करनें की बजाय उसे विवादस्पद बना कर आवेदक को अपने मकड़जाल में फंसा देते हैं। जबकि सरकार इन्हें जनता के जमीन संबंधी काम करने के लिए हर माह अच्छी खासी तनख्वाह देती है।
इन जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारियों द्वारा राजस्व नियमों से परे आवेदक को दलाल के माध्यम से ख़बर भिजवाया जाता है कि दस से पंद्रह डिसमिस जमीन के सीमांकन के एवज में एक डिसमिस जमीन उन्हें दिया जाय। मतलब नगद नारायण का प्रचलन बंद।
ऐसे प्रकरणों में दलाल गारंटी लेता है कि सीमांकन के बाद मौके पर जमीन पर खूंटा गाड़ कर देंगे और तुम चुपचाप एक डिसमिस जमीन दोगे इस समझौते का बाकायदा स्टाम्प में लिखापढ़ी किया जाएगा। सीमांकन बाद तुम एक डिसमिस जमीन की रजिस्ट्री अधिकारी जिसे कहेंगे उसे कर देना।
इतना ही नहीं आर आई,पटवारी दलाल के माध्यम से कहते हैं कि यदि यह ऑफर मंजूर नहीं तो 40 से 50 लाख की क़ीमती जमीन का मुआवजा 8 से 9 लाख रुपए ले लो। नहीं तो एक डिसमिस जमीन देकर अपनी जमीन के सीमांकन का सौदा कर लो। या फिर साल दर साल चक्कर लगाते रहो।
कभी दलाल आवेदक को कहता है कि तुम्हारी जमीन दूसरे के जमीन में घुस गई है और उसे उसकी जमीन का मुआवजा मिल गया है बोलो तो उसको मिले जमीन का मुआवजा राशि रिकवरी कर तुम्हें दिला देते हैं।
दलाल कहता है कि एक डिसमिस जमीन देने का ऑफर द बेस्ट है। जमीन नाप कराकर देने की जवाबदारी उसकी है।
जानकारी तो यहां तक निकलकर सामने आ रही है कि आरआई नें आवेदक से 10 हजार रुपए का घुस ले लिया बावजूद इसके जमीन का सीमांकन नहीं किया।
राजस्व विभाग और दलाल के मकड़जाल में फंसा आवेदक कभी तहसीलदार तो कभी आर आई और पटवारी के कार्यालय का चक्कर लगा रहा है। शिकायत पर शिकायत ऐसे दर्जनों शिकायत बावजूद ऐसे धूर्त लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं होना,लचर प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाता है।
राजस्व विभाग के ऐसे मकड़जाल में सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं ऐसे पैदा हुए ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाय?