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सरकारी स्कूलों में टीचरों के बीच बैठक व्यवस्था से उपजता आक्रोश…बारहवीं बोर्ड परीक्षा की कॉपी जांची ही नहीं और मिल गया 15 दिनों का अवकाश…शासकीय खजाने को लगा रहे चूना…प्रभारी प्राचार्य की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। कहते हैं कि जब जहां लचर प्रशासनिक व्यवस्था होती है वहां अनुशासन का होना ना होना कोई मायने नहीं रखता। शिक्षा विभाग का एक सरकारी स्कूल शासन के बनाए नियम कायदे से परे हटकर संचालित हो रहा है। वजह है जिम्मेदार अधिकारियों का स्कूलों का निरीक्षण नहीं करना। ऐसे में टीचर्स के बीच आपसी तालमेल स्थापित नहीं होनें से स्कूल स्टाफ मनमानी करने में लगे हुए हैं।

यहां टीचर्स की बैठक व्यवस्था से जातिगत भेदभाव साफ नजर आता है एसटी,एससी और ओबीसी टीचर्स के लिए अलग अलग टेबल और टूटी फूटी कुर्सियां स्टाफ रूम में लगाया गया है और टीचर्स विशेष अलग टेबल पर नए और साफ सुथरे कुर्सियों पर बैठे साफ देखा जा सकता है। आश्चर्य तो तब होता है जब टीचर्स विशेष अपने टेबल से लगा कर इस उमस भरे गर्मी में कूलर की ठंडी हवाएं का रुख अपनी ओर रखते हैं।

जानकारी के मुताबिक यहां इस सत्र में 300 सौ से अधिक छात्र छात्राओं को ज्ञान देने, पदस्थ टीचर्स की संख्या अधिक होने से टीचर्स की अलग अलग लॉबी बन गई है कुछ टीचर्स तो दो तीन दिन में एक दिन स्कूल आती हैं और बीते दिनों की अटेंडेंस, प्रभारी प्राचार्य के सामने रजिस्टर में हस्ताक्षर कर तनख्वाह पूरी लेती हैं।

वहीं कुछ टीचर्स के एक दिन नहीं आने पर प्रभारी प्राचार्य तत्काल CL लगा देते हैं। ऐसे में टीचर्स के मन में व्यवस्था को लेकर आक्रोश व्याप्त है।

वहीं कुछ टीचर्स 15 दिनों से बारहवीं बोर्ड और ओपन परीक्षा सेंटर से बड़ी ईमानदारी के साथ कॉपियाँ घर ले जाकर कॉपी चेक करने के बाद वापस सेंटर में जमा कर देती हैं।

किन्तु कुछ टीचर्स दल विशेष नें बारहवीं बोर्ड की कॉपी जाँचने का बहाना बनाकर 15- 15 दिनों की छुट्टियां घर पर बिताती हैं और उसके बाद स्कूल आती हैं लेकिन उन्होंने ना तो बारहवीं बोर्ड परीक्षा की कॉपी का मूल्यांकन किया था लेकिन मूल्यांकन के नाम पर छुट्टियां जरूर ली थीं, ऐसे में मूल्यांकन प्रमाण पत्र जमा हुआ ना ही कार्यमुक्ति प्रमाण पत्र जमा किया। जिससे ऐसा लगा मानों प्रभारी प्राचार्य अपनें पदीय दायित्वों का निर्वहन करनें में असफल हो रहे हैं वहीं गैरजिम्मेदारी तरीके से अवकाश स्वीकृत किए बिना उनकी अनुपस्थिति को नजर अंदाज किया जा रहा है बल्कि बिना वजह पूछे ही बिना काम के पूरा वेतन देने का इंतजाम करते हुए शासन के खजाने को लुटाने जैसा काम किया जा रहा है।

ऐसी स्कूल व्यवस्था की वजह से ही सरकारी स्कूलों पर छात्र छात्राओं और पालकों का विश्वास कम होता जा रहा है यदि समय समय पर उच्च शिक्षा अधिकारी स्कूलों का निरीक्षण करें तो चौकाने वाले परिणाम सामने आएंगे जरूरत है अपने पदीय दायित्वों के निर्वहन की ताकि स्कूलों में शासन के नियमों का पालन हो सके।

क्रमशः …….

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