शिक्षा विभाग में, शिक्षा अधिकारियों द्वारा शिक्षकों से उगाही का गोरखधंधा!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर:-पूरा का पूरा शिक्षा विभाग काजल की कोठरी बन गया है जहां अच्छी तनख्वाह के बाद भी अनियमितता,भृष्टाचार व निरंकुशता इस कदर हावी है कि दामन बेदाग हो ही नहीं सकते।
जानकारी निकल कर आ रही है कि सरकारी स्कूलों में पिछले कुछ महीने से शिक्षकों का बिना किसी सूचना के नदारद होने का मामला अधिकारियों की जेब गर्म करनें पर उनके पुनः पदभार ग्रहण करने से सुर्खियों में है।
लंबी अवधि से नदारद शिक्षकों को लेकर कलेक्टर के कड़े निर्देश जारी होने पर ऐसे शिक्षकों में हड़कंप मच गया जो बिना किसी आवेदन या कारण के लंबी अवधि से स्कूलों से नदारद थे।
महीनों से नदारद कुछ रसूखदार शिक्षक तो कब्जुल वसूल,वेतन विवरण पत्रक में कूट रचना के माध्यम से, शिक्षक उपस्थिति पंजी में लगातार अनुपस्थित होने के बाद भी उच्च अधिकारियों से सांठगांठ कर बिना काम के हर माह की पूरी तनख्वाह उठा रहे हैं और सरकारी खजाने को चूना लगा रहे हैं। जो निष्पक्ष जांच का विषय है।
ऐसे में कलेक्टर के आदेश के बाद जिला शिक्षा अधिकारी और विकास खण्ड शिक्षा अधिकारियों को संकुल समन्वयक,प्रधान पाठक और प्राचार्य के द्वारा भेजे गए पत्र अनुसार ऐसे लापरवाह शिक्षकों पर नियमानुसार करवाई करना चाहिए था लेकिन जानकारी प्राप्त होते ही उनकी आंखों में चमक दिखाई देने लगा, उन्होंने इस बात का फायदा उठाते हुए ना केवल अपने पद का दुरुपयोग किया वरन ऐसे शिक्षकों से लाभ लेते हुए उन्हें नियम विरुद्ध पद भार ग्रहण भी करवाया है।
खबर खास के पास ऐसे ही मामले के कुछ स्कूल से दस्तावेज भी प्राप्त हुए हैं जिसमें शिक्षा अधिकारी नें एक लंबे समय, मतलब महीनों से अनुपस्थित रहने वाले शिक्षक को फर्जी मेडिकल अवकाश पर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर,नियम विरुद्ध,प्रधान पाठक,प्राचार्य पर, पद का दबाव डालते हुए शिक्षा विभाग में संलग्न शिक्षक दलालों को स्कूल भेज शिक्षक को स्कूल जॉइन तो करा दिया जाता है किन्तु भेद खुलने पर संकुल समन्वयक द्वारा प्रधान पाठक पर दबाव बना कर शिक्षकों की उपस्थिति पंजी ही बदलने की साजिश रची जाती है।
इतना ही नहीं कई शिक्षक तो पिछले कुछ महीने से शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में बिना किसी आदेश के अटैच हैं। जो उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
कुल मिलाकर स्कूल शिक्षा मंत्री और प्रमुख सचिव को गोपनीय तरीके से जांच कर ऐसे मामलों में शामिल शिक्षा अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही करनी चाहिए ताकि सरकारी शिक्षा का स्तर और बच्चों को ईमानदारी का कागजी ज्ञान देने वाले शिक्षक और शिक्षा अधिकारी भूल कर भी बेईमानी का रास्ता अख्तियार ना करें।