मुफ़्त की शिक्षा सरकारी…कमजोर आर्थिक वर्ग की लाचारी! एपिसोड-1

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। ज्ञान के मंदिर में मिलने वाली शिक्षा चाहे सरकारी हो या निजी, स्कूल की शिक्षा “शिक्षा” होती है। जिसे प्राप्त करने बच्चे स्कूल जाते हैं लेकिन शायद हमारी सरकार तमाम सरकारी योजनाओं के बाद भी सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने में नाकाम हो रही है तभी तो निजी स्कूलों में पढ़ाने की होड़ आम हो गई है। दूसरी तरफ ना तो सरकार अपने तंत्र के माध्यम से सरकारी स्कूलों में शिक्षा पर सुधार कर सकी है ना ही निजी स्कूलों की मनमानी पर नियंत्रण लगा पाई है।
एक कक्ष में तीन क्लास
ज्यादातर सरकारी प्राथमिक शालाओं में कक्ष का अभाव होने पर एक ही कक्ष में तीन क्लास जैसे पहली, दूसरी और तीसरी कक्षा के बच्चों को एक साथ बैठाकर अध्ययन कराया जाता है ऐसे में बच्चों को कैसे और कितना ज्ञान प्राप्त होता होगा आप खुद ही समझ सकते हैं। अतिरिक्त कक्ष के लिए प्रधान पाठक द्वारा पत्र लिखा जाता है,साल दर साल लिखा जा रहा है। बावजूद इसके कक्ष का निर्माण नहीं होना जिम्मदारों की व्यवस्था पर सवाल खड़े करता नजर आता है!
पालकों की पीड़ा
पालक सवाल करते हैं कि कैसे जिले के तमाम विभाग के जिला अधिकारी और विकास खण्ड अधिकारियों को उनका अपना कक्ष है जिसमें वो तमाम सुविधाएँ हैं तो फिर “देश के भविष्य” के कहे जाने वाले नवनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों?
पालक कहते हैं कि शाला प्रवेश उत्सव मनानें ऐसे स्कूलों का चयन किया जाता है जहाँ सभी सुविधाएं उपलब्ध हों ताकि मंत्री, विधायक, सांसद, कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी उनकी पीठ थपथपाऐं, शासन की योजनाओं का बखान करें। अगर मनाना ही है तो ऐसे स्कूलों का चयन करें जहाँ सुविधाओं का अभाव हो। ताकि जिम्मदारों को भी लचर शिक्षा व्यवस्था का ज्ञान हो! उसे दूर करने कोई ठोस कदम उठाए!
पालक कहते हैं कि शायद यही वजह है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों सहित तमाम अधिकारी कर्मचारी अपने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं भेजते। लेकिन हमारी तो “मजबूरी” है!
ज्वलंत सवाल यह कि क्या सरकार और जिम्मदार को सोचना नहीं होगा कि कमजोर आर्थिक वर्ग के बच्चों को बेहतर भविष्य का अवसर कैसे मिलेगा!
क्रमशः …….!