बिलासपुर

सरकारी स्कूलों में स्कूल प्रमुख व शिक्षकों के संरक्षण में बेखौफ चल रहा… निजी प्रकाशकों के एजेंट द्वारा गाइड व मॉडल पेपर बेचने का व्यवसाय।

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। वैसे तो शिक्षकों को छात्र छात्राओं को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और एक बड़ी रकम तनख्वाह के रूप में प्रतिमाह दिया जाता है किंतु शिक्षक बच्चों को पुस्तक से पढ़ाने की बजाय निजी प्रकाशक की गाईड खरीदने का फरमान सुना दे तो मामला गंभीर हो जाता है।

जी हाँ इन दिनों स्कूलों में निजी पुस्तकों और गाईड के प्रकाशकों के एजेंटों की धमक सरकारी स्कूलों में बेखौफ देखी जा रही है। गाईड और अन्य परीक्षा संबंधी मॉडल पेपर बेचने का व्यवसाय खुलेआम स्कूल परिसर के भीतर किया जा रहा है सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि निजी प्रकाशक के विक्रेता स्कूल प्रमुख जैसे प्रधानपाठक व प्राचार्य को कमीशन का प्रलोभन देकर बच्चों को विषयवार गाईड और मॉडल पेपर स्कूल परिसर में खरीदने का दबाव बना रहे हैं।

मीडिया से चर्चा के दौरान एक विद्यालय के प्राचार्य ने बताया कि ऐसा करना गैर कानूनी या नियम विरुद्ध नहीं है।

गरीब पालकों का भी कहना है कि सरकार तमाम योजनाओं सहित मुफ्त शिक्षा दे रही है, शिक्षकों को भी बच्चों को पाठ्यपुस्तक से पढ़ाकर उत्तर लिखाना चाहिए ये नहीं कि गाईड खरीद कर उससे देखकर उत्तर लिख लो। फिर किस बात की तनख्वाह जब बच्चे गाईड से ही पढ़कर उत्तर लिख परीक्षा दें।

इन दिनों प्रदेश के अधिकांश उच्चतर व उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में निजी प्रकाशक कंपनी के एजेंट व शाला प्रमुख व शिक्षकों की मिलीभगत से विद्यालय के भीतर गाइड, कुंजी, मॉडल पेपर व प्रोजेक्ट की पुस्तक बेचे जाने का खेल चल रहा है जिसमें संस्था प्रमुख की भागीदारी व संलिप्तता भी नजर आती है।

शिक्षा विभाग के जानकारों की माने तो विद्यालय परिसर में ऐसा कृत्य किया जाना नियम विरुद्ध व गैरकानूनी है। शिक्षकों का काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना है व्यवसाय करना नहीं?

इस संबंध में जब बिलासपुर जिले के कोटा विकासखंड एक प्राचार्य से पूछा गया तो उन्होंने विद्यालय में शिक्षकों द्वारा निजी प्रकाशकों की पुस्तक,गाईड व मॉडल पेपर शिक्षकों के माध्यम से बांटे जाने की बात स्वीकार करते हुए यह कहा कि ऐसा करना कोई गैरकानूनी या नियम विरुद्ध कार्य नहीं है।

यहां यह बताना लाजिमी होगा की शासन द्वारा विद्यालय में शिक्षण कार्य को छोड़कर किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियां नहीं किए जाने का प्रावधान है किंतु बावजूद इसके विद्यालय में इस प्रकार का खेल बेखौफ चल रहा है।

दूसरी ओर शासकीय नियम कायदे से बंधे अच्छी खासी तनख्वाह से अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले सरकारी शिक्षकों द्वारा व्यावसायिक गतिविधियां किए जाने से फुटकर पुस्तक विक्रेता परेशान है और यह सवाल खड़े कर रहे हैं कि उनके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा?

अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में विद्यालय परिसर में ऐसा व्यापार करना उचित है क्या विभाग के नियम कायदे इसकी छूट देते हैं और यदि नहीं तो फिर शासन इस पर कैसे अंकुश लगाए?

वैसे भी शासन की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने द्वारा जारी दिशा निर्देशों व प्रावधानों का पालन कराए और उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों पर सख्त कार्रवाई करे।

बहरहाल देखना होगा की न्याय और सच का साथ देने का नारा देने वाली सरकार इस मामले को कितनी गंभीरता से संज्ञान लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button