राजस्व विभाग में रिश्वतखोरी का अनोखा तरीका उजागर!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। राजस्व विभाग में पदस्थ अधिकारी और कर्मचारियों नें रिश्वतखोरी का एक अनोखा तरीका अपनाया है और ना जाने प्रदेश भर में स्थापित राजस्व कार्यालयों में कितने लोग अपना रहे हैं जो अपने आप में सनसनीखेज मामला है। इन तरीकों से ना केवल सरकार को राजस्व की हानि हो रही है वरन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को टैक्स के रूप में मिलने वाली राशि भी इस खेल से उनके खाते में नहीं पहुँच रही है मतलब इनकम टैक्स विभाग को भी धोखा दिया जा रहा है।
ऐसे मामले रिश्वतखोरी के नए तरीकों को बढ़ावा देते नजर आ रहे हैं मतलब हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा का चोखा।
क्या है पूरा मामला
राजस्व प्रमुख जिले के कलेक्टर होते हैं और राजस्व से जुड़े तमाम मामलों की समीक्षा भी करते हैं और दूसरी ओर राजस्व महकमे में पदस्थ अधिकारी,कर्मचारियों द्वारा शासकीय पट्टे से प्राप्त भूमि बिना कलेक्टर की अनुमति के बिक्री किए जाने का संगीन मामला सामने आ रहा है जो ना केवल रजिस्ट्री कार्यालय के अधिकारियों को सवालों के कटघरे में खड़े करता नजर आता है बल्कि उक्त भूमि के नामांतरण प्रमाणीकरण आदेश देने वाले अधिकारी की जगह नामांतरण पंजी में किसी अज्ञात व्यक्ति के हस्ताक्षर होना वह भी बिना किसी सील मुहर के गंभीर अपराध की ओर इशारा करता नजर आता है।
दूसरी ओर इस खरीदी बिक्री में विक्रेता, क्रेता से नियमानुसार दिखावे के लिए लाखों रुपए का चेक तो लेता है लेकिन उसे भुनाया नहीं जाता,चूंकि यह राजस्व विभाग से जुड़ा हुआ मामला है जिसके विषय में चर्चा चारों ओर हो रही है।
हाल ही में राजस्व प्रमुख अधिकारी बिलासपुर (छ.ग.) के पास एक गंभीर शिकायत प्राप्त हुई है जिससे राजस्व महकमे में हड़कंप मच गया है,जिसमें शिकायतकर्ता नें अपनी एक शिकायत,पटवारी के विरूद्ध दोषपूर्ण नामांतरण के संबंध में की है।
उनका आरोप है कि उक्त भूमि के कुल रकबे में से रकबा 1.10 एकड़ को विक्रेता के द्वारा क्रेता को विक्रय की गई थी, जिसमें क्रेता के द्वारा प्रतिफल की राशि के रूप में दो चेक के माध्यम से 14 लाख रूपये तथा 7 लाख रूपये विक्रेता को अदा किया गया था।
शिकायतकर्ता का आरोप है कि उक्त चेकों को विक्रेता द्वारा भुनाया ही नहीं गया।
शिकायतकर्ता नें स्पष्ट लिखा है कि भूमि खरीदी बिक्री संव्यवहार की जांच
संबंधित बैंक से करवाई जाये जिससे यह पता चलेगा कि क्या वास्तव में उक्त
भूमि के लेन-देन की प्रक्रिया सही तरीके से की गई है या नहीं।
सूत्रों के हवाले से खबर निकल कर सामने आ रही है कि क्रेता द्वारा जारी की गई लाखों की धनराशि का चेक विक्रेता द्वारा भुगतान हेतु बैंक में लगाया ही नहीं गया। क्यों?
ऐसे में शिकायतकर्त्ता का मानना है कि शासकीय पट्टे से प्राप्त भूमि कलेक्टर की बिना अनुमति के बिक्री किए जाने पर उसका आनन फानन में नामांतरण और डायवर्सन का किया जाना कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
विक्रेता नें इतनी बड़ी राशि आखिरकार क्यों छोड़ दी?
शिकायतकर्ता की मानें तो शासकीय पट्टे से प्राप्त उक्त भूमि के बिक्री व नामांतरण कराने के बाद डायवर्सन शाखा से भी मिली भगत कर शासन को लाखों रुपए के राजस्व की हानि पहुंचाने का प्रयास किया गया है।
राजस्व प्रमुख होने के नाते कलेक्टर बिलासपुर को जिले में शासकीय पट्टे से प्राप्त भूमि की खरीदी और बिक्री के शिकायती मामले की गंभीरता से जांच का आदेश देना चाहिए ताकि शासन को राजस्व का चूना लगाने वालों का चेहरा बेनकाब किया जा सके और ऐसे गंभीर अपराध पर शामिल लोगों के खिलाफ तत्काल अपराध दर्ज कराया जाय।
अंत में… ऐसा लगता है कि भृष्ट अधिकारी,कर्मचारियों एवं व्यवसायियों ने रिश्वत रूपी नगदी लेनदेन से बचने का निकाला नया तरीका निकाला है, शासन नें सन 2016 के बाद से जमीन रजिस्ट्री हेतु 20,000 रुपये से ऊपर नगदी लेनदेन पर पाबंदी लग गई थी, जिसके कारण काला धन कमाने वालों के बीच अपने धन को खपाने एवं अपने रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति लेने की प्रक्रिया में बहुत सी बाधा उत्पन्न हो गई थी, किन्तु उन्होंने इसका तोड़ भी निकाल लिया है, अब कोई भी अधिकारी कर्मचारी या व्यवसायी अपने काले धन से भूमि खरीदता है तो पैसे के लेनदेन के संबंध में वह चेक देता है परंतु उसका आहरण भूमि विक्रेता के द्वारा नहीं किया जाता है,देखने में यह लगता है कि चेक से पेमेंट दिया गया है परंतु वास्तव में उस रुपये को निकाला ही नहीं जाता है,फिर उक्त खरीदी गई जमीन का सौदा अधिक कीमत पर बेच कर एक नंबर पर रिश्वत राशि प्राप्त कर ली जाती है। जिससे शासन को और पूरे देश भर में करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है।