“जल संसाधन विभाग” को सूचना के अधिकार के तहत माँगी गई जानकारी देने, “ठेकेदार” की मंजूरी का इंतजार!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। छत्तीसगढ़ शासन का जल संसाधन विभाग एक बार फिर अपनी करतूतों की वजह से सुर्खियों में आ गया है। इस बार मामला सूचना के अधिकार अधिनियम से जुड़ा हुआ है। कहते हैं सरकार की कार्यप्रणाली और विभाग के माध्यम से किसी योजना में किए गए कार्य में पारदर्शिता लाने तथा भृष्टाचार की रोकथाम की दिशा में एक महत्वपूर्ण साधन सूचना का अधिकार है।
लोक सूचना का प्रकटन न केवल सरकार एवं आम नागरिक को एक मंच पर लाता है,बल्कि शासन तंत्र में व्याप्त भाई भतीज वाद,भृष्टाचार एवं कई प्रकार की अनियमितता के रोकथाम में भी प्रभावी होता है।
एक आम नागरिक ने शासन द्वारा स्वीकृत व जल संसाधन विभाग द्वारा बनाए गए एक डायवर्सन स्कीम के तहत भूमिपुत्र किसानों की फसलों को पानी पहुंचाने किए गए नहर निर्माण हेतु ठेकेदार को किए गए भुगतान के बिल व्हाउचर की सत्यापित छाया प्रति की मांग की थी।
तब जल संसाधन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों एवं ठेकेदार द्वारा सांठगांठ कर करोड़ों के नहर निर्माण से किसानों कोई लाभ ना पहुँचने का भेद खुल जाने का डर और जमकर किए गए भृष्टाचार उजागर हो जाने की आशंका तथा अपनी नौकरी व अपने चहेते ठेकेदार को बचाने की कवायद में अधिकारियों नें सूचना के अधिकार अधिनियम को ही बदल डाला और जानकारी भेज दी कि यदि ठेकेदार की सहमति मिलती है तो जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
जल संसाधन विभाग के अधिकारियों नें तो सूचना के अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को बदलते हुए बकायदा आवेदक को पत्र लिख भेजा कि जानकारी तृतीय पक्ष से संबंधित होने के कारण जन सूचना अधिकारी नें ठेकेदार की सहमति/असहमति हेतु पत्र भेजा गया है ठेकेदार की सहमति उपरांत ही जानकारी दिया जाना संभव है।
फिर कुछ दिन बाद जल संसाधन विभाग से पत्र आया कि ठेकेदार की सहमति नहीं होने का कारण ठेकेदार को किए गए भुगतान के बिल व्हाउचर की सत्यापित छायाप्रति प्रदान नहीं कि जा सकती।
इतना ही नहीं वित्तीय अनियमितता,और जमकर किए गए भ्र्ष्टाचार,से गरीब किसानों की फसलों को पानी पहुंचाने के लिए बनाई गई करोड़ों की नहर योजना से किसानों के खेतों में उम्मीद का पानी भले ही जल संसाधन विभाग नही पहुंचा सका लेकिन जल संसाधन विभाग के जन सूचना अधिकारी द्वारा ठेकेदार के लेटर पेड पर असहमति पत्र आवेदक को जरूर पहुँच गया।…..