पत्रकारों का शुभचिंतक…एक मददगार पत्रकार… जो अपने परिवार के साथ साथ पत्रकारों के सुख दुःख का भी रखता है ख्याल।

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। एक पत्रकार जो किसी परिचय का मोहताज नहीं। उसे हर पत्रकार किसी ना किसी रूप में जानता है, पहचानता है। कोई उसे हमदर्द के रूप में जानता है तो कोई उसे मददगार के रूप में, बड़ा ही काबिल पत्रकार है वह, या यूं कह लें कि वह हरदिल अजीज पत्रकार है। हर किसी के दिल में बसता है। छोटे, बड़े पत्रकारों का पक्षधर और मददगार के रूप में जाना और पहचाना जाता है। इस निःस्वार्थ,सहयोगी और मददगार पत्रकार का नाम है मनीष शर्मा जो वर्तमान में बिलासपुर प्रेस क्लब में बतौर प्रेस क्लब उपाध्यक्ष पद पर पदस्थ हैं। कुछ पत्रकार साथी उन्हें बड़े प्यार और सम्मान से “दादा” पुकारते हैं।
सात साल पहले मैं जब बिलासपुर आया था तब मैंने देखा कि दादा हर किसी पत्रकार की समस्या को लेकर उधेड़बुन में लगे रहते। मुझे बड़ा आश्चर्य होता कि हम अपने हिस्से काम(खबर) तो कर नहीं पाते और ये शख्स अपना काम भी बड़ी ईमानदारी करता है और पत्रकारों की समस्याओं (सुख दुख) के लिए भी समय निकालता, चाहे खुशी हो या गम दुख हो या सुख ये शख्स हर जगह मौजूद होता।
कोरोना संक्रमण काल के एक साल बीत जाने पर भी मैनें दादा को उसी निःस्वार्थ भाव से पत्रकार साथियों की मदद करते देखा है जो पहले भी देखता रहा हूँ। जबकि इन दिनों कोरोना संक्रमित हो जाने की खबर की दहशत से बहुत से पत्रकारों ने घर और ऑफिस से ही काम करना शुरू कर दिया है तब भी दादा अपने बहुत से साथियों के लिए एक मददगार साथी ही साबित हुए।
इस बात का गवाह है मैं और मेरा पूरा परिवार, मुझे याद है कि मैंने दादा को 19 अप्रेल 2021 को अपने पूरे परिवार के कोरोना संक्रमित होने का मैसेज किया। मैं मानसिक रूप से काफी तनाव में था। तकलीफ काफी थी। चूँकि एक पत्रकार होने के नाते मैं जानता था कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति को लेकर लोगों में कितनी दहशत है ऐसे में स्वास्थ्य विभाग द्वारा सुरक्षा के दृष्टिकोण से घर पर कोरोना संक्रमित का पाम्पलेट चिपकाए जाने पर आस पड़ोस के लोगों ने भी डर कर मुंह फेर लिया। ऐसे कठिन समय में दादा ने साबित कर दिया कि वो सभी पत्रकार साथियों के लिए निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले पत्रकार हैं। उन्होंने बिना डरे मुझसे पूछा कि आपको किस किस चीज की जरूरत है मेसेज करें। फिर प्रतिदिन घर के दरवाजे पर दवा,फलफूल, सब्जी और ना जाने क्या क्या पहुंचाया। वो 15 दिन और आज का दिन मुझे एहसास भी नहीं होने दिया कि मैं और मेरा पूरा परिवार कोरोना संक्रमित हैं।
कोरोना संक्रमित की रिपोर्ट के चंद घंटों में ही मुझे साक्षात मौत के दर्शन हो गए थे लेकिन उस दौरान दादा नें ना केवल हौसला बढ़ाया बल्कि सामर्थ से बढ़कर मदद की। आज मैं और मेरा पूरा परिवार स्वस्थ है।
कुछ पत्रकार साथियों ने बताया कि मनीष दादा नें उनके दुःख में जो मदद की है उसे भूलना संभव नहीं इतना ही नहीं एक पत्रकार साथी नें तो बताया कि उन्हें ईलाज के लिए आर्थिक मदद की बहुत ज्यादा जरूरत थी बहुत से पत्रकार साथियों से मदद की गुहार लगाने के बाद भी मदद नहीं हो सकी। फिर किसी ने दादा से चर्चा करनें के लिए कहा दादा ने समस्या सुनी और कुछ घंटे बाद मुझे आर्थिक सहायता मिली। जिन पत्रकार साथियों ने आर्थिक सहायता की थी दादा ने उनका नाम और दी गई सहायता राशि का ब्यौरा मुझे देते हुए कहा कि और कुछ जरूरत हो तो बेझिझक बताना।
दादा को जानने वाले कुछ वरिष्ठ पत्रकार बड़ा आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि संबंधों को निभाना सीखना हो तो मनीष शर्मा से सीखा जाय। वो बतलाते हैं कि मनीष कैसे एक दिन में चार शादी, जिसमें एक जिले में और तीन दूसरे जिले में होने के बाद भी अटेंड करते हैं कभी कभी तो देर रात किसी पत्रकार की पीड़ा सुनकर निकल जाते हैं।किसी पत्रकार साथी के यहां जन्मदिन हो या फिर किसी साथी के यहाँ शादी का फंक्शन या फिर किसी साथी के यहाँ दुख की खबर आई हो दादा समय निकाल कर जाते हैं और पूछते हैं किसी चीज की जरूरत तो नहीं। किसी को शिकायत का मौका नहीं देते।
अंत में सिर्फ इतना ही कि यदि मुझसे पत्रकारों के हितों की चिंता करनें वाले पत्रकारों में किसी एक का नाम पूछा जाय तो सबसे पहले जो नाम जुबान पर आता है वो है “मनीष शर्मा”।