बिलासपुर

निजी अस्पताल की भारी भरकम फीस भरने “गरीब” को “गिरवी” रखनी पड़ी जमीन… फिर डिसचार्ज ऑन रिक्वेस्ट पर दे दी गई छुट्टी!

उस्मान कुरैशी…

लोग बदल जाते है,लेकिन हालात नही…! कहां तक ये दिया बीमार कमरें की फिजां बदले।

कभी तुम एक मुट्ठी धूप इन ताकों में भर जाना.।।

वाकई बशीर बद्र की इन पंक्तियों में दर्द का गहरा राज छुपा हुआ है जिसे सिर्फ “सीरत” वाले ही समझ सकते है। आज एक “कलाकार” शिव कुमार बयार के हालात बशीर बद्र की पंक्तियों से मेल खाते प्रतित होते है, मानो बशीर साहेब ने ये दर्द की गहराई में उतर कर लिखा हो, वक़्त और हालात के हिसाब से ये शेर शिव कुमार बयार पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है।

अब आप जनना चाहते होंगे कि आख़िर ये शिव कुमार बयार है कौन..? तो जनाब ये शिव कुमार बयार “कला” के क्षेत्र में लोक गायकों में जानीमानी हस्तियों में से एक है और शायद ही कोई ऐसा वाद्य यंत्र हो जिन पर शिव कुमार की उंगलियां न थिरकी हो,लेकिन आज ये ” लोक कलाकार” गर्दिशों के दौर से गुजर रह है।

क्योंकि एक चिकित्सक ने इस सरस्वती पुत्र का जेब और गला दोनों ही काट दिया। कोरबा जिले के ब्लॉक पाली अंतर्गत आने वाले ग्राम धावा (पोलमी) में निवासरत “संरक्षित” कहलाने वाले आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने शिव कुमार बयार एक लोकप्रिय लोकगायक है साथ ही वे विभिन्न-विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों के वादन में भी पारंगत है इतना ही नही कई मशहूर छत्तीसगढ़ी गीतों को इन्होंने अपने बासुरी वादन से सुरो से सजाया भी है इन्होंने अपने हुनर से अपने अंचल अपनी पहचान बनाई है। इतना ही नही अंचल की रामायण मंडलियों में इनकी अलग पहचान है। यक़ीनन इनके हुनर ने इन्हें शोहरत प्रदान की एक अलग सी पहचान दिया लेकिन ये पैसे कमाने के मामले में अन्य कलाकारों से काफ़ी कोसों पीछे ही रहे,अर्थात इन्होंने अपनी कला को कभी पैसा कमाने का माध्यम नही बनाया।बल्कि संगीत इनके लिये एक साधना ही रह गई।

यक़ीनन संगीत एक साधना ही है इसे हर कोई नही साध सकता है यक़ीनन शिव कुमार जी ने संगीत की साधना के लिये कठिन तपस्या की होगी। इल्म हो कि बड़ी मशहूर कहावत है कि जिनके साथ सरस्वती जी होती है लक्ष्मी जी उनसे दूर ही रहती है।

यही बात शिव कुमार जी पर भी चरितार्थ हो रही है। संगीत का जादू तो था लेकिन उससे धन की वर्षा ना हो सकी और हालात बिगड़ते चले गए।

गरीबी अभिशाप तो नही है लेकिन अभिशाप से कम भी नही है। कुछ दिनों पहले अचानक शिव कुमार जी का स्वास्थ्य खराब हो गया और उनके दाँतो में तकलीफ रहने लगा। दाँतो की तकलीफ से निजात पाने के लिये वे अपने गाँव के करीब के चिकित्सक को दिखाया लेकिन तकलीफ में कोई राहत नही मिल सकी। अतः उसके अपने चिकित्सक से सलाह से बिलासपुर के यूनिटी हॉस्पिटल में दिखाया तो डॉक्टर ने बताया कि दाँतो में मवाद भर गया है और वही मवाद अब गले तक आ गया है जिसकी वजह से गले मे सूजन आ गया है। जिसे निकलने के लिये ऑपरेशन करना पड़ेगा। अतः शिव कुमार बयार अपने बेहतर इलाज के लिये दिनांक 29/12/2020 को बिलासपुर के यूनिटी निजी चिकित्सालय में भर्ती हो गए और अपना ऑपरेशन करवा लिया व उनका इलाज भी प्रारंभ हो गया। लेकिन ऑपरेशन के बाद निजी अस्पताल ने उन्हें एकाएक भारीभरकम 70 हज़ार रुपये का बिल दे दिया गया, अतः उन्होंने आधे अधूरे ईलाज के दौरान अस्पताल से छुट्टी करवाने का विचार बनाया।

यक़ीनन 70 हज़ार रुपये एक गरीब कलाकार के लिए बहुत बड़ी बात थी। निजी अस्पताल बार-बार बिल जमा कराने के लिए दबाव बना रहा था अतः शिव कुमार ने अपनी पैतृक जमीन को गिरवी रख कर परिजनों ने 20 हजार ही जुटा पाए और 5 हजार रुपये कुछ उनके कलाकार साथियों के सहयोग से प्राप्त किया। आख़िर कुछ भी हो एक कलाकार को लोग के सामने मदद के लिये हाथ फैलाना ही पड़ा। लेकिन फिर भी अस्पताल का बिल 70 हजार नही जुटा पाए और जो भी पैसा इकठ्ठा हुआ उसे अस्पताल में जमा करके दिनांक 6/1/ 2021अस्पताल से छुट्टी ले ली।

दिल में निजी अस्पताल के पूरे बिल अदा नहीं कर पाने की एक नई पीड़ा भी शिव कुमार जी की पीड़ा में शामिल हो गया। ऑपरेशन के बाद भी उनको गले आराम नही मिला था। गले की तस्वीर देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि एक लोकप्रिय कलाकार तकलीफों के किस दौर से गुजर रहा है। ऐसा लग रहा था कि बिल अदायगी ना कर पाने के कारण वहां के डॉक्टरों ने अधूरा इलाज किया और अस्पताल से छुट्टी दे दी।

आख़िर कोई डॉक्टर अपने मरीज को ऐसे कैसे छोड़ सकता है क्या डॉक्टरों की संवेदनायें मर चुकी है। मरीज के पास पैसा नहीं होने से अस्पताल प्रबंधन की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है! इसका तो यही मतलब हुआ कि डॉक्टर आजकल जीवन बचाने,से ज्यादा पैसा कमाने के लिये मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करते है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण कलाकार शिव कुमार है।

आख़िर एक कलाकार का दिल कितना विशाल होता है इसका अनुमान तो कोई दिल वाला लगा सकता दौलत वाला नही। क्योंकि इतने दर्द और तकलीफों से गुजरने के बाद भी शिव कुमार बयार को उक्त निजी अस्पताल और वहाँ के डॉक्टरों से कोई मलाल नही है।

हालांकि शिव की जगह अगर कोई दूसरा होता तो अब तक उस अस्पताल की शिकायतों का तांता लग चुका होता। लेकिन ये महान कलाकार इस बात से खुश है कि वहाँ के डॉक्टरों ने उसका ऑपरेशन करके उसके दर्द को कम कर दिया है साथ ही बिल में भी कटौती कर दी।

इल्म हो कि जब तक शिव कुमार अस्पताल में रहे तो उनके गले की रोज ड्रेसिंग होती रही, लेकिन जब अस्पताल का बिल 70 हजार आया तो उनका दिल बैठ गया। शिव से जब बात हुई तो उन्होंने बताया कि मैने अपनी परेशानियों का पिटारा परसदा गाँव के परिचित मनोज चौहान से कही तो मनोज चौहान ने अस्पताल प्रबंधन से बात कर बिल की राशि कम करवाई। इतना ही नही उन्होंने 10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता कर दवा का बिल भी अदा किया। शिव ने आगे बताया कि उन्हें अस्पताल से छुट्टी लेकर आये हुए लगभग एक सप्ताह से अधिक हो चुके है। डॉक्टर ने पांच दिनों बाद दूबारा जाँच के लिए बुलाया था। लेकिन पैसे नही होने के कारण में अस्पताल जाँच के लिए नही जा पा रहा हूँ, मैंने मदद के लिये गुहार भी लगाई है। ताकि कुछ पैसे इकट्ठे हो तो मेरा इलाज हो जाये।

इल्म हो कि आज चिकित्सा सेवा ना होकर व्यवसाय बन गई है और आज सारा का सारा अस्पताल पैसे के दम पर चलता है,लेकिन निजी अस्पताल प्रबंधन को अपने अस्पताल में मुफ्त इलाज के लिये कुछ कोटा निर्धारित करना चाहिए जिससे गरीब भी अपना इलाज करा सके। इतना ही नही सरकार भी इन निजी अस्पतालों पर अंकुश नही लगाती है। अगर सरकार ठीक से कार्य करे तो मजाल है डॉ. ठक्कर जैसे लोग गरीबों को इलाज के नाम पर ठगना छोड़ दे,और तो और शिव कुमार बयार तो संरक्षित आदिवासी जाति से है और इन जातियों को बचाये रखने की जिम्मेदारी तो सरकार की है, अगर अस्पताल प्रबंधन बिलासपुर कलेक्टर को सूचित कर शिव कुमार के इलाज के लिये सहयोग मांगते तो खुद कलेक्टर साहेब ही सरकारी खर्चें पर शिव का इलाज करवा देते। अब भी देर नही हुई हैं अगर उनके परिजन कलेक्टर बिलासपुर से निवेदन करे तो अब भी काम बन सकता है। लेकिन सच तो ये है कि सरकार संरक्षित जातियों पर भी ध्यान नही दे रही है क्योंकि गरीबी का दर्द सरकार को नही लोकप्रिय कलाकार शिव कुमार बयार जैसों को भोगना पड़ता है। तभी तो बशीर बद्र जैसे मशहूर शायर ने कहा है कि”कभी तुम एक मुट्ठी धूप इन ताको में भर जाना”

चिकित्सा सेवा प्रदान करने वाले डॉक्टर की ड्यूटी है कि मरीज की जान बचाने और आपात स्थिति में उसकी हालत स्थिर रखने उचित विशेषज्ञता के साथ उसे सेवा प्रदान करे ना कि डिसचार्ज ऑन रिक्वेस्ट पर उसकी छुट्टी कर दे।

डॉ प्रमोद महाजन, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बिलासपुर.

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