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गुरुजी का इंतजार करते रह गए नवनिहाल… सरकारी शिक्षा का हाल बेहाल!

खबर खास छत्तीसगढ़ बिलासपुर। प्रदेश के बिलासपुर जिले में खबर खास की टीम नें गर्मी की लंबी छुट्टी के बाद खुले बिल्हा विकास खण्ड शिक्षा कार्यालय अंतर्गत संचालित कुछ सरकारी प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूलों का दौरा किया। स्कूलों में शिक्षण सत्र के पहला दिन मुफ्त में मिलने वाली शिक्षा और तमाम योजनाओं वाला सरकारी स्कूल, और जिम्मेदार शिक्षकों का मनमाना रवैया और अधिकारियों की उदासीनता का जीता जागता उदाहरण, कुछ इस तरह से धरातल पर नजर आया।

इन तस्वीरों को गौर से देखिए शाला प्रवेश का पहला दिन…दरी पर बैठकर अध्ययन कक्ष में बच्चे शिक्षक का इंतजार करते रहे… लेकिन शिक्षक पढ़ाने के लिए नहीं आए मतलब साफ है कि स्कूल भले ही खुल गए हों लेकिन शिक्षक अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे।

खबर खास की टीम नें जानकारी ली तो तनख्वाह खोर शिक्षक बच्चों को पढ़ाना छोड़, स्टॉफ रूम में कुर्सी तोड़ते नजर आए। जबकि इन गरीब तबके के बच्चों का भविष्य गढ़ने सरकार इन्हें बच्चों को पढ़ाने की तनख्वाह देती है।

इस तसवीर को गौर से देखिए सरकारी स्कूलों में बड़े बड़े सूचना पटल पर मध्यान भोजन योजना और मीनू की जानकारी लिखी होती है मतलब सोमवार से शनिवार तक भोजन में क्या क्या पकेगा की जानकारी होती है लेकिन एक स्कूल में मध्यान भोजन में पोहा पकाकर खिलाने की तैयारी हो रही है जो व्यवस्था पर सवाल खड़े करता नजर आता है।

उपरोक्त तस्वीरों पर सवाल कि स्कूल शिक्षा सत्र के प्रथम दिवस जिम्मेदार प्रधान पाठक,संकुल समन्वयक,सहायक विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी, विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी, और SMC की टीम क्या कर रही है। कहाँ है?

ऊपर और नीचे की इन तसवीर को गौर से देखिए स्कूल खुले कुछ घंटे बाद पूरा का पूरा स्टाफ द्वारा इन स्कूल में समय से पहले ही बच्चों को छुट्टी दे स्कूल के दरवाजे पर ताला लगा दिया गया। आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि एक घंटे पहले ही स्कूल बंद हो गया। क्यों? पालक जरूर अपने बच्चों से सवाल पूछते हैं कि कैसे जल्दी छुट्टी हो गई लेकिन जिम्मदारों से सवाल कौन पूछे?

अब पढ़ने स्कूल आए बच्चों और उनके पालकों को कौन समझाए कि बच्चों मुफ्त की सरकारी शिक्षा है,जहां प्राइवेट स्कूल से कई गुना अधिक तनख्वाह पाने वाले शिक्षक से यह सवाल पूछने वाला कोई नहीं, और है भी तो पूछता नहीं, इसलिए मनमानी करने पर उतारू हैं।

इस तसवीर से साफ हो जाता है कि स्कूल में पढ़ने और खेलने की बजाय ये बच्चे जल्दी छुट्टी दे देने के कारण, बंद स्कूल के पास ही बैठकर खेल खेल रहे हैं।

बहरहाल शिक्षा विभाग में मोटी मोटी तनख्वाह पर बैठे उच्च अधिकारी कब कुम्भकर्णीय नींद से जागेंगे और सरकारी शिक्षा का अधिकार कानून व योजनाओं से बच्चे कब लाभान्वित होंगे कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन तय है कि इन तस्वीरों को देखकर एक बार फिर से जनता कहेगी कि यह सरकारी स्कूल है साहब यहाँ नियम कायदा कागजों पर उकेरा जाता है घरातल पर सच्चाई होती है उसे कोई देखनें भी नहीं आता।

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