खनिज विभाग का कथा पुराण…चोरों के हाथों गिट्टी,मुरुम और रेत की खदान…अधिकारी हैं इन पर मेहरबान!

खासखबर छत्तीसगढ़ बिलासपुर। आप सभी जानते हैं कि इन दिनों खनिज विभाग सबसे ज्यादा सुर्खियों में है या फिर अपनी करतूतों से सुर्खियां बटोर रहा है। मार्च का अंतिम महीना चल रहा है।खनिज विभाग के दफ्तर में चले जाइए आपको देखकर हैरानी होगी कि चपरासी से लेकर बाबू और सारे अधिकारी अपने अपने काम में व्यस्त नजर नजर आएंगे। उन्हें सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती। वहीं दूसरे दफ्तर का नजारा देखकर आप हैरान हो जाएंगे।
अब आप ऑन लाईन रिकार्ड में देखिए कि,बिलासपुर में कितने वैध कोयला डिपो,कोल वाशरी,गिट्टी खदान, ईट भट्ठे और रेत खदान संचालित हैं। ऐसे में यहां पदस्थ एकलौते सहायक खनिज निरीक्षक राहुल गुलाटी कैसे खनिज पट्टाधारियों के खदान क्षेत्र में जाकर उनके भंडारण क्षमता, स्वीकृत खदान रकबा एरिया,रजिस्टर का निरीक्षण और अवलोकन करते होंगे।
दूसरी तरफ अवैध रूप से चलाए जा रहे डोलोमाईट खदान,क्रेशर, रेत घाट,कोल डिपो और वाशरी इनका क्या। इन पर कैसे नजर रखते होंगे!
जिले में खनिज जांच चौकी हैं वहां पर भी सुपरवाइजर और सिपाहियों की नियुक्ति है यहां भी बाकायदा गुजरने वाले वाहनों के की जांच, ड्राईवर द्वारा स्वंय वाहन से उतरकर जांच चौकी में बैठे कर्मचारी को दिखलाए गए दस्तावेज जिसमें पट्टेदार का नाम,खदान का नाम, खनिज का नाम, बुक क्रमांक,पास क्रमांक,खनिज की मात्रा,वाहन क्रमांक,चालक का नाम, नोट किया जाता है लेकिन यहां बैठे कर्मचारियों के पास भी वाहन के नजदीक जाकर देखने की फुर्सत नहीं लोगों नें बतलाया कि यहाँ भी उगाही होती है।
हालांकि साल में यहां भी दो चार प्रकरण दर्ज किए जाते हैं अवैध परिवहन के ताकि सरकारी खजाने में राजस्व की बढ़ोतरी होती रहे।
ऑफिस चले जाइए कलेक्टर साहब के कार्यालय के ठीक पीछे, खाद्य विभाग के बगल से आप देखेंगे कि कोई रॉयल्टी पर्ची पर धड़ाधड़ छाप लगा रहा है तो कोई अवैध खनन की करवाई पर व्यस्त है तो कोई साहब से चिड़िया बैठाने का इंतज़ार कर रहा है।
इन कार्यों को अंजाम देने सभी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए अलग अलग सुसज्जित केबिन बन गए हैं अब ये नहीं मालूम कि केबिन किस मद से बनवाया गया,किसने बनवाया, कितनी लागत आई,ठेकेदार को पूरा पेमेंट हुआ कि नहीं।
लेकिन ठेकेदार बार बार आता जरूर है।
खनिज विभाग के दफ्तर में बहुत से लोगों का जमघट लगा रहता है विभागीय सूत्र बताते हैं कि जो काम फील्ड यानि मौके पर जाकर करना चाहिए उसे खनिज अधिकारी अपने बंद केबिन में करते नजर आते हैं। बंद केबिन के अंदर क्या होता है वही जाने!यहां स्वीकृत खदान से जुड़े लोगों की आमद देखी जा सकती है भले ही सरकार ने सारी प्रक्रियाओं को ऑन लाइन कर दिया है लेकिन पट्टेदार मुस्कुराहट के साथ कहते हैं कि भगवान के मंदिर में चढ़ावा चढ़ाये बगैर कोई भी मनोकामनाएं पूरी नहीं होती।
यहां भी इशारों में बात चीत होती है कहते हैं कि खग जाने खग की भाषा। साफ तौर पर कहें तो यहां वही लोगों का आना ज्यादा होता है जल में रहकर मगर से वैर लेते हैं और यहां आकर घुटने टेक देते हैं।
इस दफ्तर में खनिज से जुड़े हर समस्या का समाधान होता है वो क्या कहते हैं कि कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा;भानुमति नें कुनबा जोड़ा।
मजेदार बात यह कि इस कार्यालय में घुसने से पहले इस कार्यालय की पहचान का बोर्ड लगा हुआ है जो जगह जगह से फट गया लेकिन रोज इस दफ्तर में प्रवेश करने वाले अधिकारी प्रमुख से लेकर कर्मचारियों के पास इतनी फुर्सत नहीं कि इसे बदल दें।
अंत में इतना ही कि कोरोना काल में भी पट्टेदार के लोग यहां आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं इस कहावत के साथ कि ओखली में सर दिया तो मूसल से क्या डरना?